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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मातृनामा देवता - मातृनामौषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पिशाचक्षयण सूक्त
    56

    द॒र्शय॑ मा यातु॒धाना॑न्द॒र्शय॑ यातुधा॒न्यः॑। पि॑शा॒चान्त्सर्वा॑न्दर्श॒येति॒ त्वा र॑भ ओषधे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द॒र्शय॑ । मा॒ । या॒तु॒ऽधाना॑न् । द॒र्शय॑ । या॒तु॒ऽधा॒न्य᳡: । पि॒शा॒चान् । सर्वा॑न् । द॒र्श॒य॒ । इति॑ । त्वा॒ । आ । र॒भे॒ । ओ॒ष॒धे॒ ॥२०.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दर्शय मा यातुधानान्दर्शय यातुधान्यः। पिशाचान्त्सर्वान्दर्शयेति त्वा रभ ओषधे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दर्शय । मा । यातुऽधानान् । दर्शय । यातुऽधान्य: । पिशाचान् । सर्वान् । दर्शय । इति । त्वा । आ । रभे । ओषधे ॥२०.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 20; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] (यातुधानान्) यातना देनेवाले दोषों को (मा) मुझे (दर्शय) दिखा, (यातुधान्यः=०-नीः) महापीड़ा देनेवाली कुवासनाओं को (दर्शय) दिखा। (सर्वान्) सब (पिशाचान्) मांस खानेवाले विघ्नों को (दर्शय) दिखा, (ओषधे) हे तापनाशक परमेश्वर ! (इति) इसके लिये (त्वा) तेरा (आरभे) मैं सहारा लेता हूँ ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य की बाहिरी कुचेष्टाएँ और भीतरी कुवासनाएँ उसकी उन्नति के महाविघ्न हैं, इसलिये वह विवेकपूर्वक उनका संशोधन करे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(दर्शय) आविष्कारय, प्रकाशय (मा) माम् (यातुधानान्) पीडाप्रदान् दोषान् (यातुधान्यः) धातुधानीः। पीडाप्रदायिकाः कुवासनाः (सर्वान्) (पिशाचान्) अ० १।१६।३। पिशितस्य मांसस्य भक्षकान् महादुःखदायिनो विघ्नान् (इति) एवमर्थम् (त्वा) त्वां परमात्मानम् (आरभे) आलभे। स्पृशामि। धारयामि ॥

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    विषय

    'यातुधान व पिशाच' का लक्षण

    पदार्थ

    १. है (ओषधे) = दोषों को दहन करनेवाली वेदमातः । मैं (त्वा आरभे) = तेरा आश्रय करता हूँ, तुझे अपनाता हूँ। तू (सर्वान् पिशाचान्) = सब पिशाचों को-औरों का मांस खानेवालों को [पिशितम् अश्नन्ति] (दर्शय इति) = मुझे दिखला, इसलिए मैं तेरा आश्रय लेता हूँ। २. (मा) = मुझे (यातुधानान्) = पीड़ा को आहित करनेवालों को (दर्शय) = दिखा तथा (यातुधान्य:) = इन यातुधानों की पलियों को (दर्शय) = दिखा।

    भावार्थ

    वेद द्वारा हम 'यातुधान, यातुधानी व पिशाचों' के लक्षणों को समझते हुए इनसे बचें।

    सूचना

    शरीरस्थ कुछ रोगकृमि भी इसप्रकार के हैं, जो शरीर में पीड़ा के कारण बनते हैं। अन्य रोगकृमि मांस को खा जाते हैं और हमें अमांस [दुर्बल, emacited] कर देते हैं। वेद द्वारा इन्हें समझकर हम अपने को इनका शिकार होने से बचाएँ।

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    भाषार्थ

    (मा) मुझे (यातुधानान्) यातनाएं धारण करनेवालों को (दर्शय) दिखा, (यातुधान्यः) यातना धारण करने वालियों को (दर्शन) दिखा। (सर्वान् पिशाचान्) सब मांसभक्षकों को (दर्शय) दिखा, (इति) इसलिए (औषधी) हे औषधिरूप परमेश्वर ! (त्वा आ रभे) मैं तेरा अवलम्बन करता हूँ। तुझे प्राप्त करता हूँ।

    टिप्पणी

    [आरभे=आलभे, "डुलभष् प्राप्तो" (भ्वादिः), रलयोरभेदः।]

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    विषय

    दर्शनशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे देवि ! दृक्- शक्ते ! ओषधे ! (मा) मुझ को (यातु-धानान् दर्शय) अन्तरात्मा में पीड़ा पहुंचाने वाले क्रोध, काम, लोभ आदि दुष्ट भावों का ज्ञान करा और (यातु-धान्यः) पीड़ादायक मानस दुष्प्रवृत्तियों का भी (दर्शय) साक्षात् करा। (सर्वान् पिशाचान्) और शारीरिक शक्तियों को भस्मीभूत करने वाले अन्य दुष्ट विषयों के भी वास्तविक स्वरूप का साक्षात् (दर्शय) परिचय करा (इति) इसी प्रयोजन से हे (ओषधे) दुःख, पापों के दाह करने और ज्ञान को धारण करने वाली विवेक ख्याते ! (त्वा) तेरा (आ रभे) मैं अवलम्ब लेता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मातृनामा ऋषिः। मातृनामा देवताः। १ स्वराट्। २-८ अनुष्टुभः। ९ भुरिक्। नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Sight

    Meaning

    O herb, O light and vision of divine efficacy, show me the covert damagers of life, show me the demonic devourers of life and vitality. Show me those cancerous negativities that eat up the blood. For this purpose I love and pray for the vision of knowledge.

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    Translation

    Enable me to see the he-torturers (yatudhana). Enable me to see also the she-tortures (yatudhán). Enable me to see all the blood-suckers. For this purpose, O herb, I take hold of you.

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    Translation

    I take the support of this plant. Let it make me see the disease germs of rare existence, let it make me behold the female germs which are hardly visible. Let it make me behold distinctly all the germs which are indistinct.

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    Translation

    O power of discernment, efficacious like medicine, let rue have the knowledge of internal foes like anger, lust, and avarice, of tortuous mental proclivities, Let me have the knowledge of all passions that consume physical strength. For this purpose have I taken thy shelter!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(दर्शय) आविष्कारय, प्रकाशय (मा) माम् (यातुधानान्) पीडाप्रदान् दोषान् (यातुधान्यः) धातुधानीः। पीडाप्रदायिकाः कुवासनाः (सर्वान्) (पिशाचान्) अ० १।१६।३। पिशितस्य मांसस्य भक्षकान् महादुःखदायिनो विघ्नान् (इति) एवमर्थम् (त्वा) त्वां परमात्मानम् (आरभे) आलभे। स्पृशामि। धारयामि ॥

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