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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 35 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 35/ मन्त्र 2
    ऋषि: - प्रजापतिः देवता - अतिमृत्युः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - मृत्युसंतरण सूक्त
    19

    येनात॑रन्भूत॒कृतोऽति॑ मृ॒त्युं यम॒न्ववि॑न्द॒न्तप॑सा॒ श्रमे॑ण। यं प॒पाच॑ ब्र॒ह्मणे॒ ब्रह्म॒ पूर्वं॒ तेनौ॑द॒नेनाति॑ तराणि मृ॒त्युम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । अत॑रन् । भू॒त॒ऽकृत॑: । अति॑ । मृ॒त्युम् । यम् । अ॒नु॒ऽअवि॑न्दन् । तप॑सा । श्रमे॑ण । यम् । प॒पाच॑ । ब्र॒ह्मणे॑ । ब्रह्म॑ । पूर्व॑म् । तेन॑ । ओ॒द॒नेन॑ । अति॑ । त॒रा॒णि॒ । मृ॒त्युम् ॥३५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येनातरन्भूतकृतोऽति मृत्युं यमन्वविन्दन्तपसा श्रमेण। यं पपाच ब्रह्मणे ब्रह्म पूर्वं तेनौदनेनाति तराणि मृत्युम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । अतरन् । भूतऽकृत: । अति । मृत्युम् । यम् । अनुऽअविन्दन् । तपसा । श्रमेण । यम् । पपाच । ब्रह्मणे । ब्रह्म । पूर्वम् । तेन । ओदनेन । अति । तराणि । मृत्युम् ॥३५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 35; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (2)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (येन) जिस परमात्मा के साथ (भूतकृतः) प्राणियों को [उत्तम] बनानेवाले पुरुष (मृत्युम्) मृत्यु के कारण निरुत्साह आदि को (अति=अतीत्य) लाँघकर (अतरन्) तर गये हैं, और (यम्) जिसको (तपसा) ब्रह्मचर्य आदि तप और (श्रमेण) परिश्रम से (अन्वविन्दन्) उन्होंने अनुक्रम से पाया है। और (यम्) जिसको (ब्रह्मणे) ब्रह्मा, [वेदज्ञानी] के लिये (ब्रह्म) वेद ने (पूर्वम्) पहिले ही (पपाच) परिपक्व वा दृढ किया था। (तेन) उस (ओदनेन) बढ़ानेवाले वा अन्नरूप परमात्मा के साथ.... म० १ ॥२॥

    भावार्थ

    जिस परमात्मा को पाकर महाउपकारी जनों ने तप और परिश्रम से अनेक विघ्नों को हटाकर सुख प्राप्त किया है और जिसका प्रतिपादन वेदों ने किया है, उसी के ज्ञान से सब मनुष्य अपने क्लेश टालकर आनन्द पावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(येन) ओदनेन (अतरन्) पारं प्राप्नुवन् (भूतकृतः) भूतानां प्राणिनां कर्तार उपकर्तारः पुरुषाः (अति) अतीत्य (मृत्युम्) मरणहेतुं निरत्साहादिकम् (यम्) (अन्वविन्दन्) अनुक्रमेण प्राप्नुवन् (तपसा) ब्रह्मचर्येण (श्रमेण) श्रमु तपसि खेदे च-घञ्। परिश्रमेण। ब्रह्माभ्यासेन। (यम्) (पपाच) पक्वं दृढं चकार (ब्रह्मणे) ब्रह्मज्ञानिने (ब्रह्म) वेदः (पूर्वम्) प्रथमम्। अन्यत् पूर्ववत् म० १ ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Conquest of Death

    Meaning

    By that very sustaining spirit of the universe, life-forming powers of nature abide beyond death. By that very spirit, all-form-realised souls attain to immortality beyond form with relentless practice of meditation. By the same spiritual food of life, Vedic knowledge and meditation, which eternal Brahma prepared and perfected for us in the expansive universe, I too would conquer and outlive death and attain to immortality.

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