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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्पविषनाशन सूक्त
    57

    उ॑रु॒गूला॑या दुहि॒ता जा॒ता दा॒स्यसि॑क्न्या। प्र॒तङ्कं॑ द॒द्रुषी॑णां॒ सर्वा॑सामर॒सं वि॒षम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒रु॒ऽगूला॑या: । दु॒हि॒ता । जा॒ता । दा॒सी । असि॑क्न्या । प्र॒ऽतङ्क॑म् । द॒द्रुषी॑णाम् । सर्वा॑साम् । अ॒र॒सम् । वि॒षम् ॥१३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरुगूलाया दुहिता जाता दास्यसिक्न्या। प्रतङ्कं दद्रुषीणां सर्वासामरसं विषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उरुऽगूलाया: । दुहिता । जाता । दासी । असिक्न्या । प्रऽतङ्कम् । दद्रुषीणाम् । सर्वासाम् । अरसम् । विषम् ॥१३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 13; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    दोषनिवारण के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (उरुगूलायाः) बहुत डसनेवाली [साँपिनी] की (दुहिता) पुत्री, (असिक्न्या) उस काली [नागिनी] से (जाता) उत्पन्न हुई (दासी) डसनेवाली [साँपिनी] है। (सर्वासाम्) सब (दद्रुषीणाम्) दद्रु अर्थात् दुर्गति वा खुजली देनेवाली [साँपिनों] (प्रतङ्कम्) जीवन को कष्ट देनेवाला (विषम्) विष (अरसम्) निर्बल है ॥८॥

    भावार्थ

    जैसे सद्वैद्य की ओषधि से सर्प आदि का विष निष्फल होता है, वैसे ही मनुष्य सद्ज्ञान से कुवासनाओं की कुचालें मिटावें ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(उरुगूलायाः) उरु+गूरी हिंसागत्योः−क, टाप्। रस्य लः। बहुहिंसिकायाः सर्पिण्याः (दुहिता) पुत्री (जाता) उत्पन्ना (दासी) दास हिंसायाम्−घञ्, ङीप्। हिंस्रा (असिक्न्या) अ० १।२३।१। असितवर्णया कृष्ण्या सर्पिण्या (प्रतङ्कम्) प्र+तकि कृच्छ्रजीवने−घञ्। कृच्छ्रजीवनकरम् (दद्रुषीणाम्) मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। इति दरिद्रा दुर्गतौ−कु, रि आ इत्येतयोर्लोपः। यद्वा। कुर्भ्रश्च। उ० १।२२। इति दॄ विदारणे−कु। अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। इति षणु दाने−ड, गौरादित्वात् ङीष्। दद्रूणां दुर्गतीनां विदारणानां वा दात्रीणां सर्पिणीनाम् (सर्वासाम्) सकलानाम् (अरसम्) असमर्थम् (विषम्) हलाहलः ॥

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    विषय

    उरुगूला की दुहिता

    पदार्थ

    १. (उरुग्लाया:) = बहुत ही हिंसा करनेवाली [गूरी हिंसागत्यो:], (असिक्न्या) = कृष्णसर्पिणी की (दुहिता) = पुत्री यह सर्पिणी (दासी जाता) = बहुत ही उपक्षय करनेवाली हो गई। २. इन (सर्वासाम्) = सब (दद्रुषीणाम्) = दाद पैदा करनेवाली सर्पिणियों का (प्रतङ्कम् विषम्) = कष्टप्रद विष (अरसम्) = नौरस हो जाए।

    भावार्थ

    कृष्ण सर्पिणी की सन्तान हमें डसकर हमारी सारी त्वचा को दादों से भरा हुआ कर देनेवाली है। यह हमारे उपक्षय का कारण न बने।

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    भाषार्थ

    (उरुगुलायाः) महाहिंस्रा या महागतिशीला [महावेगवती] सर्पिणी की (दुहिता जाता) दुहिता उत्पन्न हुई है, जोकि (असिकन्या) काली सर्पिणी की (दासी) दासीवत् परिचरिका या उपक्षयकारिणी हुई है । (सर्वासाम्) सब (दद्रुषोणाम्) हिंसाप्रद सर्पिणियों को ( विषम् ) विष (प्रतङ्कम् ) जोकि जीवन को अति कष्टापन्न करता है, (अरसम्) वह रस-रहित हुआ है, नीरस हो गया है, या सुख गया है विष के सुख जाने से उसका प्रवेश साँप द्वारा शरीर में नहीं होता। अथवा अरस=विषरहित ।

    टिप्पणी

    [गुला= गूरी हिंसागत्योः (दिवादिः) । रलयोरभेदः । अथवा गुरी उद्यमने (तुदादिः), तथा गुर उद्यमने (तुदादिः), तथा गुर उद्यमने (चुरादिः) उद्यमन वेगरूप ही है। असिक्न्या=असिक्न्या:। प्रतङ्कम् =प्र +तकि कृच्छ्र जीवने (भ्वादिः)। दद्रुषीणाम्=दद दाने +रुष हिंसायाम् (भ्वादिः), तथा (दिवादिः)। दासी=अथवा दसू उपक्षये (दिवादिः)।]

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    विषय

    सर्प विष चिकित्सा।

    भावार्थ

    (उरु-गूलायाः) बड़ी गुदा वाली सर्प जाति से (दुहिता जाता) ‘दुहिता’ नाम की सर्प जाति उत्पन्न होती है। और (असि-क्न्या) ‘असिक्नी’ नाम सर्प जाति से (दासी) काटने वाली सर्प जाति उत्पन्न होती है। अर्थात् मोटी गुदा वाली जाति के सांप रक्त चूंसते हैं और काली ‘असिक्नी’ सर्प जाति के सांप एक झपट में काटते हैं। इसी प्रकार (दद्रुषीणां) वे सांप जिनके काटने से त्वचा पर दाद के समान दाफड़ उठ आवें उन सर्प-जातियों में से (सर्वासाम्) सब सर्प-जातियों के (प्रतङ्कं) अति कष्टदायी (विषम्) विष भी (अरसं) निर्बल, निर्विष होजाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गरुत्मान् ऋषिः। तक्षको देवता। १-३, जगत्यौ। २ आस्तारपंक्तिः। ४, ७, ८ अनुष्टुभः। ५ त्रिष्टुप्। ६ पथ्यापंक्तिः। ९ भुरिक्। १०, ११ निचृद् गायत्र्यौ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Snake Poison

    Meaning

    The young female snake born of the deadly black snake is highly dangerous. Let the poison of all such snakes which cause skin eruptions be reversed and rendered totally ineffective.

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    Translation

    The daughter of the urugulá (a broad necked snake ) has become the maid-servant of the black-skinned she-snake. The poison of all those she-snakes, that creep close fearlessly is powerless.

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    Translation

    I know completely the species of snakes known as Aligi, which wanders everywhere and Village, which creeps in round about way this their males, females and Kinships. They can do no harm when their poison in made powerless.

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    Translation

    The daughter of a venomous female serpent is equally venomous bornof a black she-serpent. May the deadly poison of all venomous she-serpents be rendered impotent.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(उरुगूलायाः) उरु+गूरी हिंसागत्योः−क, टाप्। रस्य लः। बहुहिंसिकायाः सर्पिण्याः (दुहिता) पुत्री (जाता) उत्पन्ना (दासी) दास हिंसायाम्−घञ्, ङीप्। हिंस्रा (असिक्न्या) अ० १।२३।१। असितवर्णया कृष्ण्या सर्पिण्या (प्रतङ्कम्) प्र+तकि कृच्छ्रजीवने−घञ्। कृच्छ्रजीवनकरम् (दद्रुषीणाम्) मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। इति दरिद्रा दुर्गतौ−कु, रि आ इत्येतयोर्लोपः। यद्वा। कुर्भ्रश्च। उ० १।२२। इति दॄ विदारणे−कु। अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। इति षणु दाने−ड, गौरादित्वात् ङीष्। दद्रूणां दुर्गतीनां विदारणानां वा दात्रीणां सर्पिणीनाम् (सर्वासाम्) सकलानाम् (अरसम्) असमर्थम् (विषम्) हलाहलः ॥

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