अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 13
ऋषिः - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
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न वि॑क॒र्णः पृ॒थुशि॑रा॒स्तस्मि॒न्वेश्म॑नि जायते। यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
स्वर सहित पद पाठन । वि॒ऽक॒र्ण: । पृ॒थु॒ऽशि॑रा: । तस्मि॑न् । वेश्म॑नि । जा॒य॒ते॒ । यस्मि॑न् । रा॒ष्ट्रे । नि॒ऽरु॒ध्यते॑ । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या । अचि॑त्त्या ॥१७.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
न विकर्णः पृथुशिरास्तस्मिन्वेश्मनि जायते। यस्मिन्राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्त्या ॥
स्वर रहित पद पाठन । विऽकर्ण: । पृथुऽशिरा: । तस्मिन् । वेश्मनि । जायते । यस्मिन् । राष्ट्रे । निऽरुध्यते । ब्रह्मऽजाया । अचित्त्या ॥१७.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पदार्थ
(विकर्णः) विशेष श्रवण शक्तिवाला और (पृथुशिराः) विस्तीर्ण मस्तक शक्तिवाला पुरुष (तस्मिन्) उस (वेश्मनि) घर में (न) नहीं (जायते) होता है (यस्मिन्) जिस (राष्ट्रे) राज्य में.... ॥१३॥
भावार्थ
मनुष्य वेदविद्या से ही बहुश्रुत और विज्ञानी होते हैं ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(न) निषेधे (विकर्णः) कर्ण भेदने−अच्। विशेषश्रवणः। बहुश्रतः (पृथुशिराः) विस्तीर्णमस्तकशक्तियुक्तः। बहुप्रज्ञः (तस्मिन्) (वेश्मनि) गृहे (जायते) उत्पद्यते ॥
विषय
वेदत्याग व पाप-प्रसार
पदार्थ
१. (यस्मिन् राष्ट्र) = जिस राष्ट्र में (अचित्या) = नासमझी के कारण (ब्रह्मजाया) = प्रभु से प्रादुर्भूत की गई [ब्रह्मण: जायते] यह वेदवाणी (निरुध्यते) = रोकी जाती है, अर्थात् जहाँ वेदज्ञान का प्रचार नहीं होता, वहाँ (अस्य) = इस ब्रह्मजाया का निरोध करनेवाले पुरुष की (जाया) = पत्नी जो शतवाही-घर के सैकड़ों कार्यों को करनेवाली व (कल्याणी) = मङ्गल-साधिका होनी चाहिए थी, वह (न तल्पम् आश्ये) = अपने बिछौने पर नहीं सोती, अर्थात् वह सती न रहकर स्वैरिणी बन जाती है, तब शतवाहीत्व और कल्याणीत्व का तो प्रसङ्ग ही नहीं रहता। २. इसीप्रकार जिस घर में वेदाध्ययन की परिपाटी नहीं रहती (तस्मिन् वेश्मनि) = उस घर में (विकर्ण:) = विशिष्ट श्रोत्रशक्तिवाला-शास्त्रों का खुब ही श्रवण करनेवाला (पृथुशिरा:) = विशाल मस्तिष्कवाला सन्तान (न जायते) = उत्पन्न नहीं होता। माता-पिता जब अध्ययन ही नहीं करेंगे तब सन्तान ज्ञान की रुचिवाले कैसे होंगे?
भावार्थ
जिन घरों में वेदाध्ययन की परिपाटी नहीं रहती, वहाँ स्त्रियों का आचरण ठीक नहीं रहता और सन्तान पठन की रुचिवाले नहीं होते, निर्बल-मस्तिष्क सन्तान उत्पन्न होते हैं।
भाषार्थ
(तस्मिन् वेश्मनि) [राजा के] उस घर में (विकर्णः) विशिष्ट सदुपदेशों के श्रवणकारी कानोंवाला तथा (पृथुशिराः) बड़े सिरवाला अर्थात् महाज्ञानी पुत्र (न जायते) नहीं पैदा होता, (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राष्ट्र में (ब्रह्मजाया) ब्रह्मजाया ( अचित्त्या) अज्ञान-पूर्वक, (निरुध्यते) [प्रचार करने से] रोकी जाती है।
टिप्पणी
["सदुपदेश-श्रवण", यथा "श्रुधि श्रुत श्रद्धेयं ते वदामि" (अथर्व० ४।३०।४)।]
विषय
ब्रह्मजाया या ब्रह्मशक्ति का वर्णन।
भावार्थ
(यस्मिन् राष्ट्रे अचित्या ब्रह्म-जाया नि-रुध्यते) जिस राष्ट्र में मूर्खता-वश ब्राह्मणों की व्यवस्था तथा शासन को रोक दिया जाता है (तस्मिन् वेश्मनि) उस राष्ट्र में, घरों में (वि-कर्णः पृथुशिराः) विशेष कर्ण-शक्ति से सम्पन्न श्रुतिशील तथा विशाल मस्तक वाले, विचारवान् पुरुष (न जायते) नहीं उत्पन्न होते।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मजाया देवताः। १-६ त्रिष्टुभः। ७-१८ अनुष्टुभः। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma-Jaya: Divine Word
Meaning
Neither the man of versatile learning and objective understanding nor the man of high intelligence and broad mind arises in the homes of that Rashtra where either by error or by ignorance the vision and Word of divine values and voice of the Brahmana is suppressed.
Translation
Not a big-eared and large-headed son is born in his house, in whose domain an intellectual's wife is detained thoughtlessly.
Translation
No child of broad ears and grand brain takes birth in that home within whose Kingdom the wife of Brahman is detained through want of sense.
Translation
In a country where the spread of Vedic knowledge is prohibited through lack of sense, no precocious and intelligent son is ever born in a house.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(न) निषेधे (विकर्णः) कर्ण भेदने−अच्। विशेषश्रवणः। बहुश्रतः (पृथुशिराः) विस्तीर्णमस्तकशक्तियुक्तः। बहुप्रज्ञः (तस्मिन्) (वेश्मनि) गृहे (जायते) उत्पद्यते ॥
हिंगलिश (1)
Subject
Effects of lack of our sensibilities towards women
Word Meaning
No intellectual scholars grow where females are exploited, commandeered/forced upon against their free will & the nation/society becomes deaf /ignorant to the voice of the people.
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