अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 2
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
56
उ॒द्वेप॑माना॒ मन॑सा॒ चक्षु॑षा॒ हृद॑येन च। धाव॑न्तु॒ बिभ्य॑तो॒ऽमित्राः॑ प्रत्रा॒सेनाज्ये॑ हु॒ते ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त्ऽवेष॑माना: । मन॑सा । चक्षु॑षा । हृद॑येन । च॒ । धाव॑न्तु । बिभ्य॑त: ।अ॒मित्रा॑: । प्र॒ऽत्रा॒सेन॑ । आज्ये॑ । हु॒ते ॥२१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्वेपमाना मनसा चक्षुषा हृदयेन च। धावन्तु बिभ्यतोऽमित्राः प्रत्रासेनाज्ये हुते ॥
स्वर रहित पद पाठउत्ऽवेषमाना: । मनसा । चक्षुषा । हृदयेन । च । धावन्तु । बिभ्यत: ।अमित्रा: । प्रऽत्रासेन । आज्ये । हुते ॥२१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं को जीतने को उपदेश।
पदार्थ
(आज्ये हुते) घृत भाग में चढ़ाने पर (मनसा) मन से (चक्षुषा) नेत्र से (च) और (हृदयेन) हृदय से (उद्वेपमानाः) थरथराते हुए, (बिभ्यतः) भय मानते हुए (अमित्राः) वैरी लोग (प्रत्रासेन) घबराहट के साथ (धावन्तु) भागें ॥२॥
भावार्थ
जैसे अग्नि घी चढ़ाने से प्रचण्ड होता है, वैसे ही युद्धाग्नि प्रचण्ड होने पर कुशल सेनापति शत्रुओं को अङ्ग भङ्ग करके भगा दे ॥२॥
टिप्पणी
२−(उद्वेपमानाः) अत्यन्तं कम्पमानाः (मनसा) चित्तेन (चक्षुषा) नेत्रेण (हृदयेन) अन्तःकरणेन (धावन्तु) पलायन्ताम् (बिभ्यतः) भयं प्राप्नुवन्तः (अमित्राः) पीडकाः शत्रवः (प्रत्रासेन) व्याकुलत्वेन (आज्ये) घृते (हुते) अग्नौ प्रक्षिप्ते सति (च) ॥
विषय
आज्ये हुते
पदार्थ
१. (आज्ये हुते) = युद्ध में परस्पर की द्वेषाग्नि में एक बार शस्त्र उठ जाने पर [तेजो वा आज्यम, वनो वा आज्यम्-तै० ३.९.४.६, ३.६.४.१५] युद्ध की अग्नि में अस्त्रों की आहुति पड़ जाने पर (अमित्रा:) = हमारे शत्रु (मनसा चक्षुषा हृदयेन च) = मन, नेत्र व हृदय से (उद्वेपमाना:) = काँपते हुए (प्रत्रासेन) = प्रकृष्ट भय से (बिभ्यत:) = भयभीत होते हुए (धावन्त) = भाग खड़े हों।
भावार्थ
युद्धवाद्य के बज उठने पर-शस्त्रों के प्रहार के आरम्भ में ही हमारे शत्र कम्पित व भयभीत होकर भाग खड़े हों।
भाषार्थ
( मनसा, चक्षुषा , हृदयेन, व) मन से, चक्षु से और हृदय से (उद्वेपमानाः) कांपते हुए (अमित्राः) शत्रु, (बिभ्यतः) भयभीत हुए (धावन्तु) दौड़ जाएं, (प्रत्रासेन) भय के कारण। (आज्ये हुते) युद्धयज्ञ में रक्ताज्य की आहुतियों के होने पर।
विषय
युद्धविजयी राजा को उपदेश।
भावार्थ
(आज्ये हुते) अग्नि में घी की आहुति पड़ जाने पर अर्थात् युद्ध में परस्पर की द्वेषाग्नि में एक बार शस्त्र उठ जाने या धावा बोले जाने पर ही (अमित्राः) शत्रु लोग (प्र-त्रासेन) खूब डर के कारण (बिभ्यतः) भयभीत और (मनसा) मन से (चक्षुषा) आंखों से और (हृदयेन) हृदय से (उद्वेपमानाः) थर थर कांपते हुए (धावन्तु) रण से भाग जाय।
टिप्पणी
तेजो वा आज्यम्। तै० ३। ९। ४। ६ ॥ वज्रो वा आज्यम्। २०। ३। ६। ४। १५॥ यदाजिमायन् तदाज्यानामाज्यत्वम्। ता० ७। २। १ ॥ इत्यादि ब्राह्मण निर्वचनों से आज्य = राजा का तेज, वीर्य। वज्र= तलवार और आजिधावन अर्थात् रण में शत्रु पर आक्रमण ये आज्य के शब्दार्थ हैं जिनका प्रतिनिधि भूत मुहावरा ‘आग में आहुति पड़ना’ मात्र है।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
War and Victory-the call
Meaning
Let the unfriendly elements shaken at heart and mind, their eyes dazzled, flee with fear and panic when the battle call is given and the oblation has been offered into the fire.
Translation
Trembling badly in their mind, eye and heart, terrified, may the enemies flee out of fear as soon as the purified butter is poured (into sacrificial fire).
Translation
In the moments spent up for offering the oblation of ghee let enemies flee being possessed of consternation, horrified, trembling in mind, eye and heart.
Translation
When once the furious fire of battle has flared up, let our foemen flee, through consternation, terrified, trembling in mind and eye and heart.
Footnote
When once the oblation of butter is put into the fire, it blazes up, so when once the first shot of gun is fired, the battle-fire flares up, तेजोवाआज्यम् 3-9-4-6. The fervour of a king is आज्य butter in a battle.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(उद्वेपमानाः) अत्यन्तं कम्पमानाः (मनसा) चित्तेन (चक्षुषा) नेत्रेण (हृदयेन) अन्तःकरणेन (धावन्तु) पलायन्ताम् (बिभ्यतः) भयं प्राप्नुवन्तः (अमित्राः) पीडकाः शत्रवः (प्रत्रासेन) व्याकुलत्वेन (आज्ये) घृते (हुते) अग्नौ प्रक्षिप्ते सति (च) ॥
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