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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 9
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
    49

    ज्या॑घो॒षा दु॑न्दु॒भयो॒ऽभि क्रो॑शन्तु॒ या दिशः॑। सेनाः॒ परा॑जिता य॒तीर॒मित्रा॑णामनीक॒शः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ज्या॒ऽघो॒षा: । दु॒न्दु॒भय॑: । अ॒भि । क्रो॒श॒न्तु॒ । या: । दिश॑: । सेना॑:। परा॑ऽजिता: । य॒ती: । अ॒मित्रा॑णाम् । अ॒नी॒क॒ऽश: ॥२१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ज्याघोषा दुन्दुभयोऽभि क्रोशन्तु या दिशः। सेनाः पराजिता यतीरमित्राणामनीकशः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ज्याऽघोषा: । दुन्दुभय: । अभि । क्रोशन्तु । या: । दिश: । सेना:। पराऽजिता: । यती: । अमित्राणाम् । अनीकऽश: ॥२१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं को जीतने को उपदेश।

    पदार्थ

    (ज्याघोषाः) हमारी प्रत्यञ्चा के शब्द और (दुन्दुभयः) सब दुन्दुभि (याः) व्यापक (दिशः) दिशाओं में (अनीकशः) श्रेणी-श्रेणी (यतीः) चलती हुई (अमित्राणाम्) वैरियों की (पराजिताः) हारी (सेनाः अभि) सेनाओं पर (क्रोशन्तु) पुकार मचावें ॥९॥

    भावार्थ

    वीर सेनापति अपने अस्त्र-शस्त्रों से सब दिशाओं में शत्रु के प्रत्येक दल को रोक कर हरा देवे ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(ज्याघोषाः) मौर्वीध्वनयः (दुन्दुभयः) (अभि) प्रति (क्रोशन्तु) गर्जन्तु (याः) या गतौ−ड, टाप्। व्यापिकाः (दिशः) अत्यन्तसंयोगे द्वितीया। पूर्वादि दिशाः (सेनाः) सेनादलान् (पराजिताः) अभिभूताः (यतीः) इण्−शतृ, ङीप्। गच्छन्तीः (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (अनीकशः) म० ८। श्रेण्या श्रेण्या ॥

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    विषय

    ज्याघोषा:, दुन्दुभयः

    पदार्थ

    १. हमारी (ज्याघोषा:) = धनुष की डोरियों की आवाजें और (दुन्दुभयः) = भेरियौं (याः दिश:) = जिस भी दिशा में (अभिक्रोशन्तु) = शत्रुओं का आह्वान करें-उन्हें ललकारें, उन्हीं दिशाओं में (अमित्राणाम्) = शत्रुओं की (अनीकश:) = टुकड़ियों-की-टुकडियाँ (सेनाः) = सेनाएँ (यती:) = जाती हुई (पराजिता:) = पराजित हो जाएँ।

    भावार्थ

    हमारे ज्याघोष व दुन्दुभि के शब्द शत्रुओं को भग्न व पराजित करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (याः दिशः) जो दिशाएँ हैं उन्हें, (ज्याघोषाः) [हमारे] धनुषों की डोरियाँ और (दुन्दुभयः) दुन्दुभियाँ१ (अभि क्रोशन्तु) गुंजा दें। (अमित्राणाम् ) शत्रुओं की (सेना:) सेनाएँ (अनीकश:) श्रेणी-श्रेणी में विभक्त हुई (पराजिताः यती:) पराजित होती हुई हों।

    टिप्पणी

    [दुन्दुभयः =प्रथम वार बहुवचन में।१ सेनाः =शत्रुओं की नाना सेनाएँ। अनीकश: = पदातियों, अश्वारोहियों, रथियों, हस्तिपकों तथा खाद्य सामग्री पहुँचानेवालों की भिन्न-भिन्न श्रेणियाँ।] [१. "दुन्दुभयः" में वहुवचन यह सूचित करता है कि जो राष्ट्र-संघ, किसी समान-शत्रु के साथ युद्ध करे, वह अपनी-अपनी सेना के साथ अपनी-अपनी जाति की विशिष्ट दुन्दुभि भी भेजें, जोकि स्वजातीय सैनिकों में जोश पैदा कर सके।]

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    विषय

    युद्धविजयी राजा को उपदेश।

    भावार्थ

    हमारी (ज्या-घोषाः) धनुष की डोरियों की आवाजें और (दुन्दुभयः) भेरियां (ग्राः दिशः) जिन दिशाओं में भी (अभि क्रोशन्ति) शत्रुओं को ललकारें उन्हीं दिशाओं में (अमित्राणां) शत्रुओं की (अनीकशः) दस्तों की दस्तें (सेनाः) सेनाएं (यतीः) जाती जाती (परा-जिताः) पराजित हो जायं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War and Victory-the call

    Meaning

    Let the twangs of bow strings and boom of the drums roar and resound in the quarters of space while the enemy forces in battle may retreat, defeated, line by line.

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    Translation

    O sun, may you take away their vision. O beams of light, run after them. The power of arms having gone, let the fetters be tied on (their feet).

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    Translation

    Let the war-drums with the sound of bow-strings resound the quarters of the sky, so that the armies of enemy sustaining defeat and run away im block and league.

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    Translation

    To all the quarters of the sky let clang of bow-strings and our Drums, cry out to hosts of foes, that go discomfited in serried ranks.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(ज्याघोषाः) मौर्वीध्वनयः (दुन्दुभयः) (अभि) प्रति (क्रोशन्तु) गर्जन्तु (याः) या गतौ−ड, टाप्। व्यापिकाः (दिशः) अत्यन्तसंयोगे द्वितीया। पूर्वादि दिशाः (सेनाः) सेनादलान् (पराजिताः) अभिभूताः (यतीः) इण्−शतृ, ङीप्। गच्छन्तीः (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (अनीकशः) म० ८। श्रेण्या श्रेण्या ॥

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