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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 12
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - योनिः, गर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
    59

    सवि॑तः॒ श्रेष्ठे॑न रू॒पेणा॒स्या नार्या॑ गवी॒न्योः। पुमां॑सं पु॒त्रमा धे॑हि दश॒मे मा॒सि सूत॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सवि॑त: । श्रेष्ठे॑न । रू॒पेण॑ । अ॒स्या: । नार्या॑: । ग॒वी॒न्यो: । पुमां॑सम् । पु॒त्रम् । आ । धे॒हि॒ । द॒श॒मे । मा॒सि । सूत॑वे ॥२५.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सवितः श्रेष्ठेन रूपेणास्या नार्या गवीन्योः। पुमांसं पुत्रमा धेहि दशमे मासि सूतवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सवित: । श्रेष्ठेन । रूपेण । अस्या: । नार्या: । गवीन्यो: । पुमांसम् । पुत्रम् । आ । धेहि । दशमे । मासि । सूतवे ॥२५.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गर्भाधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (सवितः) हे सबके उत्पन्न करनेवाले परमेश्वर (श्रेष्ठेन) श्रेष्ठ... म० १० ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(सवितः) हे सर्वोत्पादक परमेश्वर ॥

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    विषय

    पुमांसं पुत्रम्

    पदार्थ

    १. हे (धात:) = सबका धारण करनेवाले! (त्वष्ट:) = सबके निर्मात:-विश्वकर्मन् प्रभो! हे (सवितः) = सबको जन्म देनेवाले! (प्रजापते) = प्रजाओं के रक्षक प्रभो! (श्रेष्ठेन रूपेण) = सर्वोत्तम रूप के साथ (अस्याः नार्या:) = इस नारी की (गवीन्यो:) = गर्भधारक दोनों पार्श्वस्थ नाड़ियों में (पुमांसम्) = अपने जीवन को पवित्र बनानेवाले वीर [नकि नामर्द] (पुत्रम्) = सन्तान को (दशमे मासि सूतवे) = दसवें महीने में उत्पन्न होने के लिए (आधेहि) = सम्यक् स्थाति कीजिए। २. प्रभु ही सबका धारण करते हैं। वे ही सबके निर्माता हैं, वे जन्म देनेवाले [व प्रेरित करनेवाले] प्रभु प्रजाओं के रक्षक हैं।

    भावार्थ

    बालक के गर्भस्थ होने पर उस धाता, त्वष्टा, सविता, प्रजापति' प्रभु का स्मरण करनेवाली नारी ठीक समय पर पवित्र, वीर सन्तान को जन्म देती है।

     

    विशेष

    अगले सूक्क का ऋषि भी 'ब्रह्मा' ही है। यह उत्तम सन्तान यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त होती है।




     

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    भाषार्थ

    (सवितः) हे प्रेरक या उत्पादक परमेश्वर !, (श्रेष्ठेन रूपेण) श्रेष्ठ रूपाकृति से संयुक्त [ पुत्र के लिए ] ( अस्या: नार्या: गवीन्योः) इस नारी की दो गवीनी-नाड़ियों में (पुमांसम्, पुत्रम्) पुमान पुत्र [ के उत्पादक वीर्यं ] का आधान कर, (दशमे मासि) दसवें मास में (सूतवे) उत्पन्न होने के लिए। सविता= षू प्रेरणे (तुदादिः)

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    विषय

    गर्भाशय में वीर्यस्थापन का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (सवितः) पुत्रोत्पादक पिता ! तू इस अपनी स्त्री की गवीनी नामक नाड़ियों के बीच में दसवें मास में प्रसव होने के लिये (श्रेष्ठेन रूपेण०) श्रेष्ठ सुन्दर रूप से सम्पन्न पुमान् पुत्र का आधान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। योनिगर्भो देवता। १-१२ अनुष्टुभः। १३ विराट् पुरस्ताद् बृहती। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Garbhadhanam

    Meaning

    O Savita, lord creator, sustain and mature virile progeny with noblest form and character in the womb of this mother between her groins to be born on maturation in the tenth month.

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    Translation

    O inspirer Lord (Savitr), within the two groins of this woman, may you place a male child with the best of forms, due to be born in the tenth month.

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    Translation

    Let Savitar, the productive power of nature lay within the sides of this woman the male germ with the noblest form to give birth in the tenth month.

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    Translation

    O All-creating God, develop.in a noble way, in the body of this dame, the male child, to be born in the tenth month.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(सवितः) हे सर्वोत्पादक परमेश्वर ॥

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