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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 8
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - योनिः, गर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
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    अधि॑ स्कन्द वी॒रय॑स्व॒ गर्भ॒मा धे॑हि॒ योन्या॑म्। वृषा॑सि वृष्ण्यावन्प्र॒जायै॒ त्वा न॑यामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अधि॑ । स्क॒न्द॒ । वी॒रय॑स्व । गर्भ॑म् । आ । धे॒हि॒ । योन्या॑म् । वृषा॑ । अ॒सि॒ । वृ॒ष्ण्य॒ऽव॒न् । प्र॒ऽजायै॑ । त्वा॒ । आ । न॒या॒म॒सि॒ ॥२५.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधि स्कन्द वीरयस्व गर्भमा धेहि योन्याम्। वृषासि वृष्ण्यावन्प्रजायै त्वा नयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अधि । स्कन्द । वीरयस्व । गर्भम् । आ । धेहि । योन्याम् । वृषा । असि । वृष्ण्यऽवन् । प्रऽजायै । त्वा । आ । नयामसि ॥२५.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गर्भाधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (अधि स्कन्द) उठकर खड़ा हो, (वीरयस्व) वीरता कर, और (योन्याम्) गर्भ आशय में (गर्भम्) सन्तानजनक सामर्थ्य (आ) अच्छे प्रकार (धेहि) स्थापित कर। (वृष्ण्यावन्) हे वीर्यवान् पुरुष ! तू (वृषा) ओजस्वी (असि) है, (प्रजायै) सन्तान के लिये (त्वा) तुझे (आ नयामसि) हम समीप लाते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुष पराक्रमपूर्वक धन आदि प्राप्त करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करे, जिस से सन्तान की यथावत् रक्षा होवे ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(अधि) उपरि (स्कन्द) गच्छ (वीरयस्व) विक्रमयस्व (गर्भम्) सन्तानजनकं सामर्थ्यम् (आ) यथावत् (धेहि) धारय (योन्याम्) गर्भाशये (वृषा) ओजस्वी (वृष्ण्यावन्) वृषन्−यत्। वृष्णो वीरस्य कर्म तद्वन्। पराक्रमवन् (प्रजायै) सन्तानाय (त्वा) त्वाम् (आ) समीपे (नयामसि) प्रापयामः ॥

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    विषय

    केवल प्रजा के लिए

    पदार्थ

    १. हे (वृष्ण्यावन्) = शक्तिशाली पुरुष! तू (अधिस्कन्द) = अपने क्षेत्र [पत्नी] की ओर गतिवाला हो। (वीरयस्थ) = बीरतापूर्ण कर्म करनेवाला हो। (योन्याम्) = योनी में (गर्भम् आधेहि) = गर्भ की स्थापना कर । २. (वृषा असि) = तू सेचन में समर्थ है। हे शक्तिशाली ! (त्वा) = तुझे प्रजायै सन्तानोत्पादन के लिए ही (नयामसि) = पत्नी के समीप प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    पति के द्वारा पत्नी के शरीर में वीर्यसेचन केवल सन्तानोत्पत्ति के उद्देश्य से ही हो।

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    भाषार्थ

    (अधि स्कन्द) अधिक शारीरिक परिश्रम कर (वीरयस्व) वीरता के कर्म किया कर, तदनन्तर (योन्याम्) योनि में (गर्भम् आ धेहि) गर्भाधान कर। (वृष्ण्यावन्) हे वर्षुक वीर्यवाले! (वृषा असि ) तू वीर्यवर्षा करनेवाला है, अत: (प्रजायै) प्रजोत्पत्ति के लिए (त्वा) तुझे (आनयामि) हम (गृहस्थ कर्म में) लाते हैं, [गृहस्थ कर्म की अनुज्ञा देते हैं। स्कन्द= स्कन्दिर् गतिः (भ्वादिः)।]

    टिप्पणी

    [शारीरिक परिश्रम करना, वीरता के कर्म करना और वीर्यवान् होना-ये शर्त हैं गृहस्थ कर्म के लिए।]

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    विषय

    गर्भाशय में वीर्यस्थापन का उपदेश।

    भावार्थ

    हे वीर पुरुष ! (अधि-स्कन्द) अपने क्षेत्र में जा, (वीरयस्व) विशेष नियम से अंग का प्रवेश कर और (योन्याम्) योनिभाग में (गर्भम्) गर्भ को (आ धेहि) स्थापन कर (वृषा असि) तू वीर्यसेचन में समर्थ हैं। हे (वृष्ण्यावन्) वीर्यसेचन में समर्थ पुरुष ! (प्रजायै) प्रजा के उत्पन्न करने के लिये ही (वा) तुझ को हम स्त्रियां (नयामसि) प्राप्त करती हैं। अथवा हम अनुभवी पुरुष (त्वा नयामसि) तुझे योग्य पत्नी के पास प्राप्त कराते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। योनिगर्भो देवता। १-१२ अनुष्टुभः। १३ विराट् पुरस्ताद् बृहती। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Garbhadhanam

    Meaning

    Rise, O man, be valiant, and place the seed in the womb. You are strong and profuse in manliness. We exhort you only for procreation.

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    Translation

    Get up. Move vigorously. Set the embryo well in the womb. O virile one, you are full of manly vigour. We have brought you here for progeny’s sake.

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    Translation

    Says wife to her husband at the time of pregnation ceremony-O husband! please rise up, put forth your manly strength, lay the germ of embryo in the womb and you are the strong and vigorous. J as your wife accept you for the sake of progeny.

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    Translation

    Rise up, put forth thy manly strength, and lay the semen within the womb. Powerful art thou with vigorous strength: for progeny we bring thee near.

    Footnote

    We refers to learned persons who arrange for the marriage of a young, healthy personwith a girl.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(अधि) उपरि (स्कन्द) गच्छ (वीरयस्व) विक्रमयस्व (गर्भम्) सन्तानजनकं सामर्थ्यम् (आ) यथावत् (धेहि) धारय (योन्याम्) गर्भाशये (वृषा) ओजस्वी (वृष्ण्यावन्) वृषन्−यत्। वृष्णो वीरस्य कर्म तद्वन्। पराक्रमवन् (प्रजायै) सन्तानाय (त्वा) त्वाम् (आ) समीपे (नयामसि) प्रापयामः ॥

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