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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 9
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - योनिः, गर्भः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
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    वि जि॑हीष्व बार्हत्सामे॒ गर्भ॑स्ते॒ योनि॒मा श॑याम्। अदु॑ष्टे दे॒वाः पु॒त्रं सो॑म॒पा उ॑भया॒विन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । जि॒ही॒ष्व॒ । बा॒र्ह॒त्ऽसा॒मे॒ । गर्भ॑:। ते॒ । योनि॑म् । आ । श॒या॒म् । अदु॑: । ते॒ । दे॒वा: । पु॒त्रम् । सो॒म॒ऽपा: । उ॒भ॒या॒विन॑म् ॥२५.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि जिहीष्व बार्हत्सामे गर्भस्ते योनिमा शयाम्। अदुष्टे देवाः पुत्रं सोमपा उभयाविनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । जिहीष्व । बार्हत्ऽसामे । गर्भ:। ते । योनिम् । आ । शयाम् । अदु: । ते । देवा: । पुत्रम् । सोमऽपा: । उभयाविनम् ॥२५.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गर्भाधान का उपदेश।

    पदार्थ

    (बार्हत्सामे) हे अत्यन्त करके प्रिय कर्म वा सामवेद जाननेवाली पत्नी ! तू (वि) विशेष करके (जिहीष्व) उद्योग कर, (गर्भः) सन्तानजनक सामर्थ्य (ते) तेरे (योनिम्) गर्भ आशय में (आ शयाम्=शेताम्) प्राप्त हो। (सोमपाः) अमृत पान करनेवाले (देवाः) उत्तम गुणों ने (उभयाविनम्) दोनों [माता-पिता] की रक्षा करनेवाला (पुत्रम्) कुलशोधक सन्तान (अदुः) दिया है ॥९॥

    भावार्थ

    बलवती गुणवती स्त्री प्रयत्नपूर्वक उत्तम सन्तान उत्पन्न करे ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(वि) विशेषण (जिहीष्व) ओहाङ् गतौ−लोट्। गच्छ। उद्योगं कुरु (बार्हत्सामे) नामन्सीमन्०। उ० ४।१५१। इति बृहत्+साम सान्त्वने−मनिन्, मलोपः। तदधीते तद्वेद। पा० ४।२।५९। इति बृहत्सामन्−अण्। अजाद्यतष्टाप्। पा० ४।१।४। इति टाप्। बृहत् साम सान्त्वनं प्रियकरणं सामवेदं वा जानाति या सा बार्हत्सामा। तत्सम्बुद्धौ (गर्भः) सन्तानजनकं सामर्थ्यम् (ते) तत्र (योनिम्) गर्भाशयम् (आशयाम्) तलोपः। आशेताम्। प्राप्नोतु (अदुः) दत्तवन्तः (ते) तुभ्यम् (देवाः) दिव्यगुणाः (पुत्रम्) अ० १।११।५। कुलशोधकं सन्तानम् (सोमपाः) अमृतपानशीलाः (उभयाविनम्) उभय−आविनम्। सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये पा० ३।२।७८। इति उभय+अव रक्षणे−णिनि। उभयोर्मातापित्रो रक्षकम् ॥

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    विषय

    बार्हत सामे

    पदार्थ

    १. स्त्री का ज्ञानवृत्तिवाला होना आवश्यक है, अत: उसे 'बार्हत्सामे' इस रूप में सम्बोधित करते हैं। हे (बार्हत्सामे) = खूब ही ज्ञानवृत्तिवाली स्त्रि! तू (विजिहीष्व) = विशेषरूप से प्रयत्न कर। (गर्भ:) = गर्भ (ते) = तेरी (योनिम् आशयान) = योनि में शयन कर रहा है। बालक के गर्भस्थ होने पर माता को ज्ञानवृत्तिवाला व क्रियाशील जीवनवाला बनना चाहिए, तभी गर्भस्थ बालक मन में शान्त, शरीर में पूर्ण स्वस्थ व क्रियाशील बन पाएगा। २. (सोमपा:) = सोम [वीर्य] का रक्षण करनेवाले (देवा:) = सब दिव्यभाव (ते) = तुझे (उभयाविनम्) = शरीर में शक्ति व मस्तिष्क में ज्ञानवाले 'उभयावी' (पुत्रम) = सन्तान को (अदू:) = देते हैं। बालक के गर्भस्थ होने पर संयमी जीवन सन्तान को 'उभयावी' बनाता है।

    भावार्थ

    गर्भ-धारण करनेवाली माता शान्तवृत्ति की हो। वह संयत जीवनवाली होकर सोम का रक्षण करे। इससे सन्तान 'शक्ति व ज्ञान' दोनों से परिपूर्ण होगी।

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    भाषार्थ

    (बार्हत्सामे) महाशान्तिवाली हे पत्नि! (विजिहीष्व) तू [पति से] विगत हो जा, उससे भोग का सम्बन्ध त्याग दे। ( गर्भ: ) गर्भस्थ शिशु (ते योनिम्) तेरी योनि में (आशये१) पूर्णतया सोता रहे। (सोमपाः देवाः) सोम-ओषधि के पीनेवाले दिव्य पुरुषों ने (ते) तेरे लिए ( पुत्रम्, अदुः ) पुत्र दिया है, जोकि (उभयाविनम्) तुम दोनों की रक्षा करनेवाला है या अभ्युदय और निःश्रेयस का रक्षक है।

    टिप्पणी

    [पत्नी महासामा२ अर्थात् महाशान्तिवाली है, गर्भ धारण कर वह पतिभोग से विरत हो गई है। उसे कहा है कि अव तू पतिभोग से विरत रह, ताकि शिशु आराम से तेरी योनि में सोया रहे, उसे कोई नुकसान न पहुंचे। 'सोमपाः' द्वारा यह सूचित किया है कि ये सोमपायी देव, तुझे भी सोम-ओषधि का पान कराते रहे हैं, अतः इनकी कृपा से तुझे पुत्र मिला है [गर्भकरणं पिब, (मन्त्र ६)]। विजिहीष्व=वि +ओहाङ् गतौ (जुहोत्यादिः)।] [१. शयन द्वारा यह प्रतीत होता है कि गर्भ, शिशु की अवस्था में, परिणत हो गया है। २. अथवा महासाम, या वृहत् नामक साम की गायिका।]

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    विषय

    गर्भाशय में वीर्यस्थापन का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (बार्हत्सामे) बार्हत्सामे ! जाये ! (वि जिहीष्व) तू भी विशेष रूप से प्रयत्न कर जिससे (गर्भः) वीर्यरूप गर्भ (ते) तेरी (योनिम्) गर्भस्थान के कमलनाभि में (आ-शयाम्) अच्छी प्रकार चला जाय। (देवाः) देवगण, (सोम-पाः) वीर्य का पालन करने वाले, (ते) तुझे ऐसा (उभयाविनं) हमारा तुम्हारा दोनों का सम्मिलित (पुत्रं) पुत्र (अदुः) प्रदान करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। योनिगर्भो देवता। १-१२ अनुष्टुभः। १३ विराट् पुरस्ताद् बृहती। त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Garbhadhanam

    Meaning

    Wax with the divine joy of hymnal divinity, and let the seed be placed in the womb. May the divinities of nature and humanity, all lovers and protectors of creative Soma bless you with noble progeny for both of us.

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    Translation

    O woman, skilled in recitation of brhat-saman, be fully prepared; let an embryo set in your womb, The enlightened ones, the enjoyers of devotional bliss (the Soma-drinkers), have blessed you with a son that will partake of both (i.e., he would be a protector of both)

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    Translation

    O wife, the chanter of Brihat saman! be prepared, let the germ be laid within your womb, let physical force protecting the world give you the son who save you and me both.

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    Translation

    Exert, O Woman, the singer of Brihat Sama, so that semen be laid with-in thy womb. The learned preservers of semen, have given a son to thee, who guards me and thee.

    Footnote

    Me: husband. Thee: wife.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(वि) विशेषण (जिहीष्व) ओहाङ् गतौ−लोट्। गच्छ। उद्योगं कुरु (बार्हत्सामे) नामन्सीमन्०। उ० ४।१५१। इति बृहत्+साम सान्त्वने−मनिन्, मलोपः। तदधीते तद्वेद। पा० ४।२।५९। इति बृहत्सामन्−अण्। अजाद्यतष्टाप्। पा० ४।१।४। इति टाप्। बृहत् साम सान्त्वनं प्रियकरणं सामवेदं वा जानाति या सा बार्हत्सामा। तत्सम्बुद्धौ (गर्भः) सन्तानजनकं सामर्थ्यम् (ते) तत्र (योनिम्) गर्भाशयम् (आशयाम्) तलोपः। आशेताम्। प्राप्नोतु (अदुः) दत्तवन्तः (ते) तुभ्यम् (देवाः) दिव्यगुणाः (पुत्रम्) अ० १।११।५। कुलशोधकं सन्तानम् (सोमपाः) अमृतपानशीलाः (उभयाविनम्) उभय−आविनम्। सुप्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये पा० ३।२।७८। इति उभय+अव रक्षणे−णिनि। उभयोर्मातापित्रो रक्षकम् ॥

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