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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - परसेनाहननम्, इन्द्रः, वनस्पतिः छन्दः - उपरिष्टाद्बृहती सूक्तम् - शत्रुपराजय सूक्त
    60

    मृ॒त्यवे॒ऽमून्प्र य॑च्छामि मृत्युपा॒शैर॒मी सि॒ताः। मृ॒त्योर्ये अ॑घ॒ला दू॒तास्तेभ्य॑ एना॒न्प्रति॑ नयामि ब॒द्ध्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मृ॒त्यवे॑ । अ॒मून् । प्र । य॒च्छा॒मि॒ । मृ॒त्यु॒ऽपा॒शै: । अ॒मी इति॑ । सि॒ता: । मृ॒त्यो: । ये । अ॒घ॒ला: । दू॒ता: । तेभ्य॑: । ए॒ना॒न् । प्रति॑ । न॒या॒मि॒ । ब॒द्ध्वा । ८.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मृत्यवेऽमून्प्र यच्छामि मृत्युपाशैरमी सिताः। मृत्योर्ये अघला दूतास्तेभ्य एनान्प्रति नयामि बद्ध्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मृत्यवे । अमून् । प्र । यच्छामि । मृत्युऽपाशै: । अमी इति । सिता: । मृत्यो: । ये । अघला: । दूता: । तेभ्य: । एनान् । प्रति । नयामि । बद्ध्वा । ८.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 8; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (अमून्) उन्हें (मृत्यवे) मृत्यु को (प्र यच्छामि) मैं सौंपता हूँ, (मृत्युपाशैः) मृत्यु के पाशों से (अमी) वे लोग (सिताः) बँधे हुए हैं। (मृत्योः) मृत्यु के (ये) जो (अघलाः) दुःखदायी (दूताः) दूत हैं, (तेभ्यः) उनके पास (एनान्) इन्हें (बद्ध्वा) बाँध कर (प्रति नयामि) मैं लिये जाता हूँ ॥१०॥

    भावार्थ

    राजा दुःखदायी दुष्टों को घातकों द्वारा वध करावे ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(मृत्यवे) मरणाय (अमून्) दुःखदायिनः (प्र यच्छामि) ददामि (मृत्युपाशैः) मरणसाधनैः (अमी) ते (सिताः) बद्धाः (मृत्योः) मरणस्य (ये) (अघलाः) अघ+ला दाने-क। दुःखदायिनः (दूताः) अ० १।७।६। उपतापकः। दूतसदृशा घातकजनाः (तेभ्यः) (एनान्) (प्रति नयामि) प्रतिकूलं प्रापयामि (बद्ध्वा) प्रसित्य ॥

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    विषय

    मृत्यु के 'अघ-ल' दूत

    पदार्थ

    १. (अमून्) = उन शत्रुओं को (मृत्यवे प्रयच्छामि) = मृत्यु के लिए देता हूँ। (अमी) = वे शत्रु (मृत्युपाशैः सिताः) = मृत्यु के पाशों से बद्ध होते हैं। 'विषाद, दरिद्रता, पीड़ा, थकान, मूर्छा' आदि ही मृत्यु के पाश हैं, इनसे मैं इन शत्रुओं को बाँधता हूँ। २. (ये) = जो (मृत्योः) = मृत्यु का (अघला:) = कष्ट प्रास करानेवाले (दूता:) = दूत हैं, (तेभ्य:) = उन रोग-विकारादि यमदूतों के लिए (एनान्) = इन शत्रुओं को (बद्ध्वा) = बाँधकर (प्रतिनयामि) = प्राप्त कराता हूँ।

    भावार्थ

    हम शत्रुओं को 'विषाद, दरिद्रता, पीड़ा' आदि मृत्यु के दूतों के लिए प्राप्त कराके नष्ट करते हैं।

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    भाषार्थ

    (अमून्) उन्हें (मृत्यवे) मृत्यु के प्रति (प्रयच्छामि) मैं देता हूं (अमीः) वे (मृत्युपाशैः) मृत्यु के फंदों द्वारा (सिताः) बन्धे हुए हैं। (मृत्योः) मृत्यु के (ये) जो (अघलाः) हत्यारे (दूताः) दूत हैं (तेभ्यः) उन के प्रति (एनाम्) इन्हें (बद्ध्वा) बांध कर (प्रतिनयामि) प्रत्येक को, मैं लाता हूं।

    टिप्पणी

    [अघलाः= "अघं हन्तेर्निर्ह्रसितोपसर्ग आहन्तीति" (निरुक्त ६।३।१२; पद ४३, ४४) + लाः (वाले)। यथा मधुलाः, मधुराः। सिताः= षिञ् बन्धने (स्वादिः)।]

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    विषय

    शत्रुनाशक उपाय।

    भावार्थ

    (अमून्) उन शत्रुओं को मैं (मृत्यवे) मृत्यु के (प्र यच्छामि) भेंट करता हूं। (अमी) ये सब (मृत्युपाशैः) मृत्युकारक, विषाद, दरिद्रता, पीदा, थकान, निद्रा और मूर्च्छा आदि पाशों से (सिताः) बंधे हैं। (ये) जो (मृत्योः) मृत्यु के (अघलाः*) कष्टों को लाने वाले (दूताः) संतापकारी, पीड़ादायी लोग हैं (तेभ्यः) उन जल्लादों से (एनान्) इन शत्रुओं को (बद्ध्वा) बांध कर (प्रतिनयामि) ले जाता हूं। दुष्ट, प्राणदण्ड के योग्य शत्रुओं को मृत्युपांशों से बांध बांध कर राजा अपने हत्याकारी लोगों के हाथ सोंपे, वे उनको प्राणों से वियुक्त करें।

    टिप्पणी

    *अधि गत्याक्षेपयोः (भ्वादिः)।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वंगिरा ऋषिः। इन्द्रः वनस्पतिः सेना हननश्च देवताः। १, ३, ५, १३,१८, २,८-१०,२३। उपरिष्टाद् बृहती। ३ विराट् बृहती। ४ बृहती पुरस्तात् प्रस्तारपंक्तिः। ६ आस्तारपंक्तिः। ७ विपरीतपादलक्ष्मा चतुष्पदा अतिजगती। ११ पथ्या बृहती। १२ भुरिक्। १९ विराट् पुरस्ताद बृहती। २० निचृत् पुरस्ताद बृहती। २१ त्रिष्टुप्। २२ चतुष्पदा शक्वरी। २४ त्र्यवसाना उष्णिग्गर्भा त्रिष्टुप शक्वरी पञ्चपदा जगती। चतुर्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Enemies’ Rout

    Meaning

    All those negationists and negative doers I assign to death, those that are caught up in the deadly snare. Bound as they are, I take them on to the agents of death who kill by the cause of sin and evil.

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    Translation

    I commit those men of the yonder army to death; tied with noose of death are they. Binding them fast, I carry them to the messengers of death, the merciless killers.

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    Translation

    I hand over these foes to death, they are really bound in the bonds of death, and I, the King carry them away binding fast, to meet the wicked messengers, the unfore-known calamities.

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    Translation

    I give these foemen up to Death: bound in the bonds of Death are they. I bind and carry them away to meet Death’s wicked messengers.

    Footnote

    Wicked messengers: Executioners, slaughters appointed by the king to kill the captured foes.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(मृत्यवे) मरणाय (अमून्) दुःखदायिनः (प्र यच्छामि) ददामि (मृत्युपाशैः) मरणसाधनैः (अमी) ते (सिताः) बद्धाः (मृत्योः) मरणस्य (ये) (अघलाः) अघ+ला दाने-क। दुःखदायिनः (दूताः) अ० १।७।६। उपतापकः। दूतसदृशा घातकजनाः (तेभ्यः) (एनान्) (प्रति नयामि) प्रतिकूलं प्रापयामि (बद्ध्वा) प्रसित्य ॥

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