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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निवरुणौ देवते छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    स त्वं नो॑ऽअग्नेऽव॒मो भ॑वो॒ती नेदि॑ष्ठोऽअ॒स्याऽउ॒षसो॒ व्युड्टष्टौ।अव॑ यक्ष्व नो॒ वरु॑ण॒ꣳ ररा॑णो वी॒हि मृ॑डी॒कꣳ सु॒हवो॑ नऽएधि॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒व॒मः। भ॒व॒। ऊ॒ती। नेदि॑ष्ठः। अ॒स्याः। उ॒षसः॑। व्यु॑ष्टा॒विति॒ विऽउ॑ष्टौ। अव॑। य॒क्ष्व॒। नः॒। वरु॑णम्। ररा॑णः। वी॒हि। मृ॒डी॒कम्। सु॒हव॒ इति॑ सु॒ऽहवः॑। नः॒। ए॒धि॒ ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स त्वन्नोऽअग्ने वमो भवोती नेदिष्ठोऽअस्या उषसो व्युष्टौ । अवयक्ष्व नो वरुणँ रराणो वीहि मृडीकँ सुहवो न एधि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। त्वम्। नः। अग्ने। अवमः। भव। ऊती। नेदिष्ठः। अस्याः। उषसः। व्युष्टाविति विऽउष्टौ। अव। यक्ष्व। नः। वरुणम्। रराणः। वीहि। मृडीकम्। सुहव इति सुऽहवः। नः। एधि॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    Translation -
    May you, O light-divine, our preserver, be nearest to us with your protection at the breaking of the dawn. May you reconcile to us the cosmic waters, and propitiated by our praise, cherish our homage, and be swift to respond to our calls. (1)

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