अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - साम्नी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
वेद॑ आ॒स्तर॑णं॒ब्रह्मो॑प॒बर्ह॑णम् ॥
स्वर सहित पद पाठवेद॑: । आ॒ऽस्तर॑णम् । ब्रह्म॑ । उ॒प॒ऽबर्ह॑णम् ॥३.७॥
स्वर रहित मन्त्र
वेद आस्तरणंब्रह्मोपबर्हणम् ॥
स्वर रहित पद पाठवेद: । आऽस्तरणम् । ब्रह्म । उपऽबर्हणम् ॥३.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(वेदः) सामवेद (आस्तरणम्) बिछौना अर्थात् गद्दी हुआ, (ब्रह्म) ब्रह्मदेव अर्थात् अथर्ववेद (उपबर्हणम्) मसनद अर्थात् बड़ा सिरहाना हुआ।
टिप्पणी -
[वेदः=परिशिष्ट होने के कारण "वेद" से अभिप्राय सामवेद१ प्रतीत होता है। "ब्रह्म" शब्द अथर्ववेद के लिये प्रसिद्ध है। अथवा वेदः=वैदिक ज्ञान तथा ब्रह्म=ब्रह्म का आश्रय। उपबर्हणम्=बड़ा तकिया (बर्हणम्=बृह् वृद्धौ)] [१. "सामवेद" चूंकि उपासनाप्रधान वेद है, इसलिए इसे "आस्तरण" अर्थात् बिछौना या गद्दी कहा है, इस पर उपासना में व्रात्य ने स्थिररूप में बैठना है।]