अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 3/ मन्त्र 9
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
तामा॑स॒न्दींव्रात्य॒ आरो॑हत् ॥
स्वर सहित पद पाठताम् । आ॒ऽस॒न्दीम् । व्रात्य॑: ।आ । अ॒रो॒ह॒त् ॥३.९॥
स्वर रहित मन्त्र
तामासन्दींव्रात्य आरोहत् ॥
स्वर रहित पद पाठताम् । आऽसन्दीम् । व्रात्य: ।आ । अरोहत् ॥३.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 3; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(ताम्) उस (आसन्दीम्) कुर्सी पर (व्रात्यः) व्रात्य-सन्यासी ने (आरोहत) आरोहण किया।
टिप्पणी -
[इस आसन्दी अर्थात् कुर्सी के घटक अवयव निम्नलिखित हैं:- (क) वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद- ये चार ऋतुएं, (ख) बृहत् आदि चार सामगान; (ग) ऋक्, यजुः, साम और अथर्व-ये चार वेद; (घ) वैदिकज्ञान और ब्रह्म की उपासना; (ङ) तथा उच्चस्वर से ओ३म् का जप। वसन्त आदि चार ऋतु विश्राम करके, और इन ऋतुओं में बृहत् आदि सामगानों को करके, चारों वेदों का स्वाध्याय, ब्रह्मोपासना, तथा ओ३म् का सस्वर जप कर के, व्रात्य पुनः प्रचार के लिये यात्रा का आरम्भ करे-यह भावना इस सूक्त में दर्शाई है। पुनः प्रचार की भावना सूक्त ४ से ७ तक में स्पष्ट द्योतित हो रही है। आरोहत्=इस पद द्वारा आसन्दी पर आरोहण मात्र दशार्या है, बैठना नहीं । इसलिये "साम आसादः" द्वारा यह दर्शाया है कि व्रात्य इस आसन्दी पर "शान्तिपूर्वक बैठा भी"। इस सब वर्णन द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि व्रात्य का वर्णन संन्यासी के आदर्श जीवन का कथनमात्र है, किसी ऐतिहासिक व्रात्य का वर्णन नहीं हैं। ऐतिहासिक व्यक्ति ऐसी काल्पनिक आसन्दी पर नहीं बैठ सकता]। [१. ऋतुमयी-तथा-वेदमयी आसन्दी पर शारीरिक आरोहण सम्भव नहीं, अतः यह आरोहण मानसिक आरोहण ही है। इस से प्रतीत होता है कि १५वें काण्ड का समग्र वर्णन केवल आदर्शवाद है। मानुष घटनारूप नहीं।]