अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 124/ मन्त्र 1
कया॑ नश्चि॒त्र आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑। कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठकया॑ । न॒: । चि॒त्र: । आ । भु॒व॒त् । ऊ॒ती । स॒दाऽवृ॑ध: । सखा॑ ॥ कया॑ । शचि॑ष्ठया । वृ॒ता ॥१२४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता ॥
स्वर रहित पद पाठकया । न: । चित्र: । आ । भुवत् । ऊती । सदाऽवृध: । सखा ॥ कया । शचिष्ठया । वृता ॥१२४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 124; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(चित्रः) अद्भुत स्वरूपवाला परमेश्वर, जो कि (नः) हमें (सदावृधः) सदा बढ़ानेवाला (सखा) सखा है, वह (कया) किस रक्षाविधि से (नः आ भुवत्) हमारे सब ओर विद्यमान है?। उत्तर—(कया) सुखमयी (शचिष्ठया) तथा अत्यन्त प्रज्ञामयी (वृता) वर्तावविधि द्वारा वह हमारे सब ओर विद्यमान है।