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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 137

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 137/ मन्त्र 6
    सूक्त - ययातिः देवता - सोमः पवमानः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १३७

    स॒हस्र॑धारः पवते समु॒द्रो वा॑चमीङ्ख॒यः। सोमः॒ पती॑ रयी॒णां सखेन्द्र॑स्य दि॒वेदि॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒हस्र॑ऽधार: । प॒व॒ते॒ । स॒मु॒द्र: । वा॒च॒म्ऽई॒ड्ख॒य: ॥ सोम॑: । पति: । र॒यी॒णाम् । सखा॑ । इन्द्र॑स्य । दि॒वेऽदि॑वे ॥१३७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्रधारः पवते समुद्रो वाचमीङ्खयः। सोमः पती रयीणां सखेन्द्रस्य दिवेदिवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रऽधार: । पवते । समुद्र: । वाचम्ऽईड्खय: ॥ सोम: । पति: । रयीणाम् । सखा । इन्द्रस्य । दिवेऽदिवे ॥१३७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    भक्तिरस (सहस्रधारः) हजारों धाराओं अर्थात् लहरों के रूप में, (समुद्रः) समुद्र के सदृश (पवते) उछलता है, और (वाचम्) भक्तिमय स्तोत्रों को (ईङ्खयः) प्रेरित करता है। (सोमः) भक्तिरस (रयीणाम्) आध्यात्मिक-विभूतियों का (पतिः) पति है, और (दिवेदिवे) दिन-प्रतिदिन भक्तिरस का (इन्द्रस्य) जगत्-सम्राट् का (सखा) प्रिय बनता जाता है।

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