अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 137/ मन्त्र 7
सूक्त - तिरश्चीराङ्गिरसो द्युतानो वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त १३७
अव॑ द्र॒प्सो अं॑शु॒मती॑मतिष्ठदिया॒नः कृ॒ष्णो द॒शभिः॑ स॒हस्रैः॑। आव॒त्तमिन्द्रः॒ शच्या॒ धम॑न्त॒मप॒ स्नेहि॑तीर्नृ॒मणा॑ अधत्त ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । द्र॒प्स: । अं॒शु॒ऽमती॑म् । अ॒ति॒ष्ठ॒त् । इ॒या॒न: । कृ॒ष्ण: । द॒शऽभि॑: । स॒हस्रै॑: ॥ आव॑त् । तम् । इन्द्र॑: । शच्या॑ । धम॑न्तम् । अप॑ । स्नेहि॑ती: । नृ॒ऽमना॑: । अ॒ध॒त्त॒ ॥१३७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्रैः। आवत्तमिन्द्रः शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त ॥
स्वर रहित पद पाठअव । द्रप्स: । अंशुऽमतीम् । अतिष्ठत् । इयान: । कृष्ण: । दशऽभि: । सहस्रै: ॥ आवत् । तम् । इन्द्र: । शच्या । धमन्तम् । अप । स्नेहिती: । नृऽमना: । अधत्त ॥१३७.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(कृष्णः) काला तमोगुण, (दशभिः सहस्रैः) हजारों काले कर्मों के साथ, (इयानः) आता हुआ, जब (अंशुमतीम्) प्रकाशवाली सात्विक-चित्त-वृत्ति में (अव अतिष्ठत्) बैठ जाता है, तब वह सात्विक-चित्तवृत्ति को स्वानुरूप कर देता है, जैसे कि (द्रप्सः) दही की खट्टी लस्सी दूध में पड़ी हुई, दूध को स्वानुरूप कर देती है। तब (धमन्तम्) अपने काले कर्मों के साथ सांप-सदृश फुंकारते हुए (तम्) उस काले तमोगुण को, (इन्द्रः) परमेश्वर, (शच्या) निज आज्ञा द्वारा, (आवत्) नष्ट कर देता है। और (नृमणाः) उपासक-नेताओं पर कृपालु मनवाला परमेश्वर, (स्नेहितीः) इन हिंस्र चित्तवृत्तियों को, (अप अधत्त) दूर कर देता है।
टिप्पणी -
[द्रप्सः= Diluted sour milk, diluted curds (आप्टे)। आवत्=आ अवत्; अव् (हिंसायाम्)। धमन्तम्=फुंकारना (मन्त्र २०.१२९.९-१०)। स्नेहितीः=स्नेहति वधकर्मा (निघं০ २.१९)।]