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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 137

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 137/ मन्त्र 5
    सूक्त - ययातिः देवता - सोमः पवमानः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १३७

    इन्दु॒रिन्द्रा॑य पवत॒ इति॑ दे॒वासो॑ अब्रुवन्। वा॒चस्पति॑र्मखस्यते॒ विश्व॒स्येशा॑न॒ ओज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्दु॑: । इन्द्रा॑य । प॒व॒ते॒ । इति॑ । दे॒वास॑: । अ॒ब्रु॒व॒न् ॥ वा॒च: । पति॑: । म॒ख॒स्य॒ते॒ । विश्व॑स्य । ईशा॑न: । ओज॑सा ॥१३७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्दुरिन्द्राय पवत इति देवासो अब्रुवन्। वाचस्पतिर्मखस्यते विश्वस्येशान ओजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्दु: । इन्द्राय । पवते । इति । देवास: । अब्रुवन् ॥ वाच: । पति: । मखस्यते । विश्वस्य । ईशान: । ओजसा ॥१३७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (इन्दुः) चन्द्रमा (इन्द्राय) जगत्-सम्राट् की प्राप्ति के लिए (पवते) मानो दैनिक गतियाँ कर रहा है, (इति) यह तथ्य, (देवासः) दिव्य व्यक्ति (अब्रुवन्) कहते हैं। तथा वे यह भी कहते हैं कि (वाचस्पतिः) वेदवाणियों का पति जगत्-सम्राट् ही (मखस्यते) उपासना-यज्ञों को सफल बनाता है, जो कि (ओजसा) निज ओज के कारण (विश्वस्य) समग्र जगत् का (ईशानः) अधीश्वर है।

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