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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ययातिः देवता - सोमः पवमानः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १३७
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    इन्दु॒रिन्द्रा॑य पवत॒ इति॑ दे॒वासो॑ अब्रुवन्। वा॒चस्पति॑र्मखस्यते॒ विश्व॒स्येशा॑न॒ ओज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्दु॑: । इन्द्रा॑य । प॒व॒ते॒ । इति॑ । दे॒वास॑: । अ॒ब्रु॒व॒न् ॥ वा॒च: । पति॑: । म॒ख॒स्य॒ते॒ । विश्व॑स्य । ईशा॑न: । ओज॑सा ॥१३७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्दुरिन्द्राय पवत इति देवासो अब्रुवन्। वाचस्पतिर्मखस्यते विश्वस्येशान ओजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्दु: । इन्द्राय । पवते । इति । देवास: । अब्रुवन् ॥ वाच: । पति: । मखस्यते । विश्वस्य । ईशान: । ओजसा ॥१३७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्दुः) सोम [तत्त्व रस] (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] के लिये (पवते) शुद्ध होता है, (वाचः पतिः) वेदवाणी का स्वामी [परमात्मा] (ओजसा) अपने सामर्थ्य से (विश्वस्य) सबका (ईशानः) राजा होकर (मखस्यते) पुरुषार्थ चाहता है−(इति) ऐसा (देवासः) विद्वानों ने (अब्रुवन्) कहा है ॥॥

    भावार्थ

    विद्वानों का निश्चय है कि परमात्मा पुरुषार्थियों को तत्त्वज्ञान देकर ऐश्वर्यवान् करता है ॥॥

    टिप्पणी

    −(इन्दुः) सोमः। तत्त्वरसः (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते पुरुषाय (पवते) शुष्यति (इति) एवम् (देवासः) विद्वांसः (अब्रुवन्) अकथयन् (वाचः) वेदवाण्याः (पतिः) स्वामी परमात्मा (मखस्यते) मख गतौ, लालसायां सुगागमः। गतिं पुरुषार्थमिच्छति (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) राजा (ओजसा) सामर्थ्येन ॥

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    विषय

    'जितेन्द्रियता-ज्ञानरुचिता-यज्ञशीलता'-सोम-रक्षण

    पदार्थ

    १. (इन्दुः) = यह शक्तिशाली सोम इन्द्राय जितेन्द्रिय पुरुष के लिए (पवते) = प्राप्त होता है (इति) = यह बात (देवास:) = देववृत्ति के विद्वान् पुरुष (अब्रुवन्) = कहते हैं। सोम जितेन्द्रिय को ही प्राप्त होता है। २. (ओजसा) = ओजस्विता से (विश्वस्य) = सबका (ईशानः) = स्वामी यह सोम (वाचस्पति:) = सब ज्ञान की वाणियों का रक्षक है, अर्थात् सोम-रक्षण से बुद्धि की तीव्रता होकर जीवन में इन ज्ञानवाणियों का रक्षण होता है। यह सोम मखस्यते यज्ञ की कामना करता है, अर्थात् एक पुरुष यज्ञशील बनता है तो उसे सोम की अवश्य प्राप्ति होती है। यज्ञशीलता सोम-रक्षण में साधन बनती हैं तथा सोमरक्षक पुरुष अवश्य यज्ञशील बनता है।

    भावार्थ

    सोम-रक्षण जितेन्द्रिय ही कर पाता है। सुरक्षित सोम ज्ञान प्राप्त कराता है। इसके रक्षण के लिए यज्ञ आदि उत्तम कर्मों में लगे रहना आवश्यक है।

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    भाषार्थ

    (इन्दुः) चन्द्रमा (इन्द्राय) जगत्-सम्राट् की प्राप्ति के लिए (पवते) मानो दैनिक गतियाँ कर रहा है, (इति) यह तथ्य, (देवासः) दिव्य व्यक्ति (अब्रुवन्) कहते हैं। तथा वे यह भी कहते हैं कि (वाचस्पतिः) वेदवाणियों का पति जगत्-सम्राट् ही (मखस्यते) उपासना-यज्ञों को सफल बनाता है, जो कि (ओजसा) निज ओज के कारण (विश्वस्य) समग्र जगत् का (ईशानः) अधीश्वर है।

    टिप्पणी

    [“इन्दु” का अर्थ भक्तिरस भी अभिप्रेत है, जो कि हृदय को रसीला बना देता है। इन्दु=उन्दी क्लेदने। “इन्दुः उनत्तेर्वा” (निरु০ १०.४.४१); तथा इन्दुः=आत्मा=जीवात्मा (निरु০ १३.२.३१)। अर्थात् भक्तिरस और जीवात्मा जगत्-सम्राट् की ओर गति करते हैं।]

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    विषय

    राजपद।

    भावार्थ

    (इन्दुः) यह द्रुतगति से जाने वाला, ज्ञानवान्, दयार्द्रपुरुष (इन्द्राय) उस ऐश्वर्यवान् प्रभु राजा के लिये ही सोमरस के समान (पवते) कार्य करता है। (इति) इस प्रकार (देवासः) विद्वान् पुरुष (अब्रुवन्) कहा करते हैं। (वाचस्पतिः) वाणी का पालक, वाणी का स्वामी, (मखस्यते) सब प्रकार की पूजा अदर सत्कार के योग्य है। वही (ओजसा) अपने बल पराक्रम से (विश्वस्य) समस्त विश्व का (ईशानः) ईश्वर, स्वामी है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १. शिरिम्बिठिः, २ बुधः, ३, ४ ६, ययातिः। ७–११, तिरश्चीराङ्गिरसो द्युतानो वा मारुत ऋषयः। १, लक्ष्मीनाशनी, २ वैश्वीदेवी, ३, ४-६ सोमः पत्र मान इन्द्रश्च देवताः। १, ३, ४-६ अनुष्टुभौ, ५-१२-अनुष्टुभः १२-१४ गायत्र्यः।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Soma, divine, brilliant and blissful, flows for Indra, the soul, say the noble sages, and thus Soma, divine source and master of speech and thought, ruler and sustainer of the entire world by his own lustre and power, is honoured at all yajnas of knowledge, yoga and austerity, for advancement.

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    Translation

    Induh, the most powerful protectiv potency of the world spreads out for the grace of God. The master of vedic speach governing over the universe through his power desires the good acts (on the part of men)—this speak the learned men.

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    Translation

    Induh, the most powerful protective potency of the world spreads out for the grace of God. The master of vedic speech governing over the universe through his power desires the good acts (on the part of men)—this speak the learned men.

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    Translation

    ‘The learned and devoted person, moved by pity towards the poor and the needy, works for the mighty God’, so say the learned persons. The master of the Vedic lore is honored and respected. He is the Ruler of the universe by His glorious energy.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    −(इन्दुः) सोमः। तत्त्वरसः (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते पुरुषाय (पवते) शुष्यति (इति) एवम् (देवासः) विद्वांसः (अब्रुवन्) अकथयन् (वाचः) वेदवाण्याः (पतिः) स्वामी परमात्मा (मखस्यते) मख गतौ, लालसायां सुगागमः। गतिं पुरुषार्थमिच्छति (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) राजा (ओजसा) सामर्थ्येन ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দুঃ) সোম [তত্ত্ব রস] (ইন্দ্রায়) ইন্দ্রের [মহান ঐশ্বর্যবান মনুষ্যের] জন্য (পবতে) বিশুদ্ধ হয়, (বাচঃ পতিঃ) বেদবাণীর স্বামী [পরমাত্মা] (ওজসা) নিজের সামর্থ্য দ্বারা (বিশ্বস্য) সকলের (ঈশানঃ) রাজা হয়ে (মখস্যতে) পুরুষার্থ কামনা করেন− (ইতি) এমনটাই (দেবাসঃ) বিদ্বানগণ (অব্রুবন্) বলেছে॥৫॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগণ নিশ্চিত যে, পরমাত্মা পুরুষার্থীদের তত্ত্বজ্ঞান প্রদান করে ঐশ্বর্যবান করেন ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দুঃ) চন্দ্র (ইন্দ্রায়) জগৎ-সম্রাটের প্রাপ্তির জন্য (পবতে) মানো দৈনিক গতি করছে, (ইতি) এই তথ্য, (দেবাসঃ) দিব্য ব্যক্তি (অব্রুবন্) বলে। তথা তাঁরা এটাও বলে, (বাচস্পতিঃ) বেদবাণীর পতি জগৎ-সম্রাটই (মখস্যতে) উপাসনা-যজ্ঞ সফল করেন, যিনি (ওজসা) নিজ ওজ/তেজের কারণে (বিশ্বস্য) সমগ্র জগতের (ঈশানঃ) অধীশ্বর।

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