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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 14
    ऋषिः - सुकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त १३७
    40

    गि॒रा वज्रो॒ न संभृ॑तः॒ सब॑लो॒ अन॑पच्युतः। व॑व॒क्ष ऋ॒ष्वो अस्तृ॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गि॒रा । वज्र॑: । न । सम्ऽभृ॑त: । सऽब॑ल: । अन॑पऽच्युत: ॥ व॒व॒क्षे । ऋ॒ष्व । अस्तृ॑त: ॥१३७.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गिरा वज्रो न संभृतः सबलो अनपच्युतः। ववक्ष ऋष्वो अस्तृतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गिरा । वज्र: । न । सम्ऽभृत: । सऽबल: । अनपऽच्युत: ॥ ववक्षे । ऋष्व । अस्तृत: ॥१३७.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (गिरा) वाणी से (संभृतः) पुष्ट किया गया, (सबलः) सबल, (अनपच्युतः) न गिरने योग्य, (ऋष्वः) गतिवाला, और (अस्तृतः) बे-रोक सेनापति (वज्रः न) बिजुली के समान (ववक्षे) रिस होवे ॥१४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य अपनी बात में सच्चा महाबली हो, वह सेनानी होकर शत्रुओं पर बिजुली के समान क्रोध करे ॥१४॥

    टिप्पणी

    १२-१४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० २०।४७।१-३ ॥

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    विषय

    "सुकक्ष' द्वारा प्रभु अर्चन

    पदार्थ

    व्याख्या अथर्व० २०.४७.१-३ पर द्रष्टव्य है। प्रभु-स्तवन करता हुआ यह प्रभु का प्रिय बनता है। यह 'वत्स' कहलाता है। यह 'वत्स' ही अगले सूक्त का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (वज्रः न) वह परमेश्वर वज्र के सदृश दुष्कर्मियों का विनाशक है। (गिरा) स्तुति-प्रार्थना की वाणी द्वारा (संभृतः) रक्षा के लिए वह संनद्ध कर लिया जाता है। (सबलः) वह बलवान् है, (अनपच्युतः) और किसी भी शक्ति द्वारा न्याय-पक्ष से च्युत नहीं किया जा सकता। (ववक्षे) वह संसार-भार का वहन कर रहा है। (ऋष्वः) वह महान् है, (अस्तृतः) अविनाशी है।

    टिप्पणी

    [अस्तृतः; स्तृणाति वधकर्मा (निघं০ २.१९)। ऋष्वः=महन्नाम (निघं০ ३.३)।

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    विषय

    राजपद।

    भावार्थ

    (गिरा) वाणी द्वारा (संभृतः) अच्छी प्रकार स्तुति किया जाकर (वज्रः न) शस्त्र के समान प्रति तीक्ष्ण (सबलः) बलवान् (अनपच्युतः) शत्रुओं से कभी पदच्युत न होने वाला (ऋष्वः) महान् तेजस्वी और (अस्तृतः) अहिंसित, अविनाशी होकर (ववक्ष) राष्ट्र के भार को उठाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १. शिरिम्बिठिः, २ बुधः, ३, ४ ६, ययातिः। ७–११, तिरश्चीराङ्गिरसो द्युतानो वा मारुत ऋषयः। १, लक्ष्मीनाशनी, २ वैश्वीदेवी, ३, ४-६ सोमः पत्र मान इन्द्रश्च देवताः। १, ३, ४-६ अनुष्टुभौ, ५-१२-अनुष्टुभः १२-१४ गायत्र्यः।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Held in and by the voice of divinity like the roar of thunder and like the flood of sun-rays, it is powerful, unfallen, irrepressible and lofty with thought, so let it express itself freely.

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    Translation

    The mighty ruler praised by praises is as strong as thunderbolt. He is unassaillable invincible great and bears the responsibility of state.

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    Translation

    The mighty ruler praised by praises is as strong as thunderbolt, He is unassailable invincible great and bears the responsibility of state.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२-१४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० २०।४७।१-३ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গিরা) বাণী দ্বারা (সম্ভৃতঃ) সম্যক পোষিত, (সবলঃ) সবল, (অনপচ্যুতঃ) অচ্যুত, (ঋষ্বঃ) গতিমান, ও (অস্তৃতঃ) অপ্রতিরোধ্য সেনাপতি (বজ্রঃ ন) বিদ্যুতের ন্যায় (ববক্ষে) ক্রোধী হবেন/হোক॥১৪॥

    भावार्थ

    যে মনুষ্য নিজের কথাতে সঠিক, মহাবলী হন, তিনি সেনানী হয়ে শত্রুদের উপর বিদ্যুতের ন্যায় ক্রোধ করেন/ক্রোধী হোক ॥১৪॥

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    भाषार्थ

    (বজ্রঃ ন) সেই পরমেশ্বর বজ্রের সদৃশ দুষ্কর্মীদের বিনাশক। (গিরা) স্তুতি-প্রার্থনার বাণী দ্বারা (সম্ভৃতঃ) রক্ষার জন্য উনাকে সংযুক্ত করা হয়। (সবলঃ) তিনি বলবান্, (অনপচ্যুতঃ) এবং কোনো শক্তি দ্বারা ন্যায়-পক্ষ থেকে অচ্যুত। (ববক্ষে) তিনি সংসার-ভার বহন করছেন। (ঋষ্বঃ) তিনি মহান্, (অস্তৃতঃ) অবিনাশী।

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