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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ययातिः देवता - सोमः पवमानः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १३७
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    सु॒तासो॒ मधु॑मत्तमाः॒ सोमा॒ इन्द्रा॑य म॒न्दिनः॑। प॒वित्र॑वन्तो अक्षरन्दे॒वान्ग॑छन्तु वो॒ मदाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒तास॑: । मधु॑मत्ऽतमा: । सोमा॑: । इन्द्रा॑य । म॒न्दिन॑: ॥ प॒वित्र॑ऽवन्त: । अ॒क्ष॒र॒न् । दे॒वान् । ग॒च्छ॒न्तु॒ । व॒: । मदा॑: ॥१३७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुतासो मधुमत्तमाः सोमा इन्द्राय मन्दिनः। पवित्रवन्तो अक्षरन्देवान्गछन्तु वो मदाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुतास: । मधुमत्ऽतमा: । सोमा: । इन्द्राय । मन्दिन: ॥ पवित्रऽवन्त: । अक्षरन् । देवान् । गच्छन्तु । व: । मदा: ॥१३७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 137; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (सुतासः) निचोड़े हुए, (मधुमत्तमाः) अत्यन्त ज्ञान करनेवाले, (मन्दिनः) आनन्द देनेवाले, (पवित्रवन्तः) शुद्ध व्यवहारवाले (सोमाः) सोम [तत्त्व रस] (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] के लिये (अक्षरन्) बहे हैं, (मदाः) वे आनन्द देनेवाले [तत्त्व रस] (वः) तुम (देवान्) विद्वानों को (गच्छन्तु) पहुँचें ॥४॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग ज्ञान के साथ सब पदार्थों का तत्त्व जानकर ऐश्वर्य बढ़ावें ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में हैं-९।१०१।४-६, सामवेद-उ० २।२। तृच १, म० १ साम० पू० ६।६।३ ॥ ४−(सुतासः) निष्पादिताः (मधुमत्तमाः) मधुना ज्ञानेन अतिशयेन युक्ताः (सोमाः) तत्त्वरसाः (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते मनुष्याय (मन्दिनः) अ० २०।१७।४। आनन्दयितारः (पवित्रवन्तः) शुद्धव्यवहारोपेताः (अक्षरन्) संचलनं कृतवन्तः (देवान्) विदुषः पुरुषान् (गच्छन्तु) प्राप्नुवन्तु (वः) (युष्मान्) (मदाः) हर्षकाः सोमाः ॥

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    विषय

    'मधुमत्तम:-मन्दिनः ' सोमाः

    पदार्थ

    १. (सतास:) = उत्पन्न हुए-हुए (सोमा:) = सोमकण (मधुमत्तमाः) = अत्यन्त माधुर्य को लिये हुए हैं। शरीर में सुरक्षित होने पर ये जीवन को बड़ा मधुर बनाते हैं। (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए ये (मन्दिन:) = हर्ष देनेवाले हैं। २. (पवित्रवन्तः) = पवित्रता करनेवाले ये सोम (अक्षरन्) = शरीर के अंग प्रत्यंग में संचरित होते हैं। शरीर को ये नौरोग बनाते हैं, मन को निर्मल। हे सोमकणो! (व: मदा:) = तुम्हारे उल्लास (देवान् गच्छन्तु) = इन देववृत्तिवाले पुरुषों को प्राप्त हों। देववृत्तिवाले पुरुष ही इन सोमकणों का रक्षण कर पाते हैं और वे ही सोमजनित उल्लास का अनुभव करते हैं। वस्तुत: सोम-रक्षण ही उन्हें 'देव' बनाता है।

    भावार्थ

    शरीर में सुरक्षित सोमकण 'माधुर्य, हर्ष, पवित्रता व उल्लास' को प्राप्त कराते है।

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    भाषार्थ

    (मधुमत्तमाः) अत्यन्त मधुर (मन्दिनः) तथा प्रसन्नतादायक (सोमाः) भक्तिरस, (इन्द्राय) जगत् के सम्राट् के लिए (सुतासः) हम प्रजाजनों में प्रकट हुए हैं। (पवित्रवन्तः) पवित्र उपासकोंवाले ये भक्तिरस (अक्षरन्) प्रवाहित हुए हैं। हे भक्तिरसो! (वः) तुमसे प्राप्त (मदाः) अध्यात्म-मस्तियाँ (देवान्) दिव्यगुणी उपासकों को ही (गच्छन्तु) प्राप्त होती हैं।

    टिप्पणी

    [१-३ मन्त्रों में राष्ट्र और राष्ट्र-सम्राट् का वर्णन हुआ है। राष्ट्र-सम्राट् द्वारा राष्ट्र को शत्रुओं से रहित करके, और सुरक्षा प्राप्त करके, तथा नैतिक शिक्षा द्वारा जीवनों को सुधारकर, और दीर्घायु प्राप्तकर, अपने जीवनों को सात्विक बनाने की ओर प्रयत्नशील होना चाहिए। तदर्थ परमेश्वर की भक्तिपूर्वक उपासना करनी चाहिए, ताकि मानुष-जीवन सफल हो सके। इसलिए मन्त्र ४ से अध्यात्म-चर्चा का प्रारम्भ हुआ है।]

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    विषय

    राजपद।

    भावार्थ

    (सुतासः) उत्पन्न किये, (मधुमत्तमाः) अत्यन्त मधुर (सोमाः) समस्त ऐश्वर्य (इन्द्राय) उस शत्रु नाशकारी राजा को ही (मन्दिनः) आनन्द देने वाले हैं। वे (पवित्रवन्तः) पवित्र करने हारे सदाचारी पुरुषों के निमित्त (अक्षरन्) पात्रों में जल के समान बहें, प्राप्त हों। हे पुरुषो ! (वः) तुम लोगों के (मदाः) समस्त हर्षदायी, तृप्तिकारी सुखजनक पदार्थ (देवान्) उत्तम ज्ञानवान् पुरुषों को भी प्राप्त हों। वे उसको सदा देखें कि हानिकारक तो नहीं हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १. शिरिम्बिठिः, २ बुधः, ३, ४ ६, ययातिः। ७–११, तिरश्चीराङ्गिरसो द्युतानो वा मारुत ऋषयः। १, लक्ष्मीनाशनी, २ वैश्वीदेवी, ३, ४-६ सोमः पत्र मान इन्द्रश्च देवताः। १, ३, ४-६ अनुष्टुभौ, ५-१२-अनुष्टुभः १२-१४ गायत्र्यः।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Filtered, felt and cleansed, honey sweet soma streams, pure and exhilarating, flow for Indra, the soul, and may the exhilarations reach you, noble favourite of divinity.

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    Translation

    The Soma-juices pressed, most palatable, gladdening, put on the Dashpaavitra are flowing for the mighty king. Let these gladdening juice also go to you, the learned men.

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    Translation

    The Soma-juices pressed, most palatable, gladdening, put on the Dashpaavitra are flowing for the mighty king. Let these gladdening juice also go to you, the learned men.

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    Translation

    The sweetest essences of herbs and other means of joys and happiness may exhilarate the king, the destroyer of the enemy. O people, let all your means of pleasures and rejoicing flow to the learned persons, acting as the purifying force.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-६ ऋग्वेद में हैं-९।१०१।४-६, सामवेद-उ० २।२। तृच १, म० १ साम० पू० ६।६।३ ॥ ४−(सुतासः) निष्पादिताः (मधुमत्तमाः) मधुना ज्ञानेन अतिशयेन युक्ताः (सोमाः) तत्त्वरसाः (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते मनुष्याय (मन्दिनः) अ० २०।१७।४। आनन्दयितारः (पवित्रवन्तः) शुद्धव्यवहारोपेताः (अक्षरन्) संचलनं कृतवन्तः (देवान्) विदुषः पुरुषान् (गच्छन्तु) प्राप्नुवन्तु (वः) (युष्मान्) (मदाः) हर्षकाः सोमाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সুতাসঃ) নিষ্পাদিত, (মধুমত্তমাঃ) অত্যন্ত জ্ঞান দাতা, (মন্দিনঃ) আনন্দ দাতা, (পবিত্রবন্তঃ) শুদ্ধ ব্যবহারকারী (সোমাঃ) সোম [তত্ত্ব রস] (ইন্দ্রায়) ইন্দ্রের [মহান ঐশ্বর্যবান পুরুষের] জন্য (অক্ষরন্) সঞ্চালিত হয়, (মদাঃ) এই আনন্দ দাতা [তত্ত্ব রস] (বঃ) তুমি (দেবান্) বিদ্বানদের কাছে (গচ্ছন্তু) পৌঁছাও ॥৪॥

    भावार्थ

    বিদ্বান ব্যক্তি জ্ঞানের সহিত সকল পদার্থসমূহের তত্ত্ব জেনে ঐশ্বর্য বৃদ্ধি করুক ॥৪॥ মন্ত্র ৪-৬ ঋগ্বেদে আছে-৯।১০১।৪-৬, সামবেদ-উ০ ২।২। তৃচ ১, ম০ ১ সাম০ পূ০ ৬।৬।৩ ॥

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    भाषार्थ

    (মধুমত্তমাঃ) অত্যন্ত মধুর (মন্দিনঃ) তথা প্রসন্নতাদায়ক (সোমাঃ) ভক্তিরস, (ইন্দ্রায়) জগতের সম্রাটের জন্য (সুতাসঃ) আমাদের প্রজাদের মধ্যে প্রকট হয়েছে । (পবিত্রবন্তঃ) পবিত্র উপাসকদের এই ভক্তিরস (অক্ষরন্) প্রবাহিত হয়েছে। হে ভক্তিরস! (বঃ) তোমার থেকে প্রাপ্ত (মদাঃ) আধ্যাত্ম-আনন্দ (দেবান্) দিব্যগুণী উপাসকদেরই (গচ্ছন্তু) প্রাপ্ত হয়।

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