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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 139

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 139/ मन्त्र 5
    सूक्त - शशकर्णः देवता - अश्विनौ छन्दः - ककुबुष्णिक् सूक्तम् - सूक्त १३९

    यद॒प्सु यद्वन॒स्पतौ॒ यदोष॑धीषु पुरुदंससा कृ॒तम्। तेन॑ माविष्टमश्विना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒प्ऽसु । वन॒स्पतौ॑ । यत् । ओष॑धीषु । पु॒रु॒दं॒स॒सा॒ । कृ॒तम् ॥ तेन॑ । मा॒ । अ॒वि॒ष्ट॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ ॥१३९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदप्सु यद्वनस्पतौ यदोषधीषु पुरुदंससा कृतम्। तेन माविष्टमश्विना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अप्ऽसु । वनस्पतौ । यत् । ओषधीषु । पुरुदंससा । कृतम् ॥ तेन । मा । अविष्टम् । अश्विना ॥१३९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 139; मन्त्र » 5

    भाषार्थ -
    (पुरुदंससा अश्विना) हे नानाविध कर्मोवाले अश्वियो! (यद्) जो आपकी (कृतम्) कृतियाँ (अप्सु) जलों के सम्बन्ध में हुई, अर्थात् नौकाओं तथा समुद्री जहाजों द्वारा व्यापार आदि; तथा (यद्) जो आपकी कृतियाँ (वनस्पतौ) वनस्पतियों के उगाने तथा उनसे फल आदि के संग्रह के सम्बन्ध में हुई हैं; (यद्) और जो आपकी कृतियाँ (ओषधीषु) ओषधियों से नानाविध औषधों के निर्माण के सम्बन्ध में हुई हैं, (तेन) उन कृतियों के साथ (मा) मेरे इस राष्ट्र में (आविष्टम्) प्रवेश करो।

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