अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
अ॒भि त्वा॑ वृषभा सु॒ते सु॒तं सृ॑जामि पी॒तये॑। तृ॒म्पा व्यश्नुही॒ मद॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । त्वा॒ । वृ॒ष॒भ॒ । सु॒ते । सु॒तम् । सृ॒जा॒मि॒ । पी॒तये॑ । तृ॒म्प । वि । अ॒श्नु॒हि॒ । मद॑म् ॥२२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि त्वा वृषभा सुते सुतं सृजामि पीतये। तृम्पा व्यश्नुही मदम् ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । त्वा । वृषभ । सुते । सुतम् । सृजामि । पीतये । तृम्प । वि । अश्नुहि । मदम् ॥२२.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(वृषभ) हे आनन्दरसवर्षी! (आ सुते) भक्तिरस के पूर्णतया तैयार हो जाने पर, मैं उपासक (सुतम्) तैयार किये भक्तिरस को (पीतये) आपकी स्वीकृति के लिए (त्वा अभि) आपके प्रति (सृजामि) समर्पित करता हूँ। (तृम्प) आप उसके द्वारा तृप्त हूजिए। और मुझमें (मदम्) आनन्दरस की मस्ती (व्यश्नुही) व्याप्त कर दीजिए, भर दीजिए।