अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 22/ मन्त्र 5
आ हर॑यः ससृज्रि॒रेऽरु॑षी॒रधि॑ ब॒र्हिषि॑। यत्रा॒भि सं॒नवा॑महे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । हर॑य: । स॒सृ॒जि॒रे॒ । अरु॑षी: । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ । यत्र॑ । अ॒भि । स॒म्ऽनवा॑महे ॥२२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ हरयः ससृज्रिरेऽरुषीरधि बर्हिषि। यत्राभि संनवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । हरय: । ससृजिरे । अरुषी: । अधि । बर्हिषि । यत्र । अभि । सम्ऽनवामहे ॥२२.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 22; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
हे परमेश्वर! (बर्हिषि अधि) हृदयाकाश में आपकी (अरुषीः) चमकीली (हरयः) क्लेशहारी किरणें (आ ससृज्रिरे) सर्वत्र प्रकट हो गई हैं। (यत्र) जिस हृदयाकाश में (अभि) प्रत्यक्षतया (सम्) सम्यक् रूप में (नवामहे) हम आपकी स्तुतियाँ करते हैं।