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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 22

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
    सूक्त - त्रिशोकः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२२

    मा त्वा॑ मू॒रा अ॑वि॒ष्यवो॒ मोप॒हस्वा॑न॒ आ द॑भन्। माकीं॑ ब्रह्म॒द्विषो॑ वनः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । त्वा॒ । मू॒रा: । अ॒वि॒ष्यव॑: । मा । उ॒प॒ऽहस्वा॑न: । आ । द॒भ॒न् ॥ माकी॑म् । ब्र॒ह्म॒ऽद्विष॑: । व॒न॒: ॥२२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा त्वा मूरा अविष्यवो मोपहस्वान आ दभन्। माकीं ब्रह्मद्विषो वनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । त्वा । मूरा: । अविष्यव: । मा । उपऽहस्वान: । आ । दभन् ॥ माकीम् । ब्रह्मऽद्विष: । वन: ॥२२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 22; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    हे उपासक! (अविष्यवः) चापलूस लोग (त्वा) तुझे, तेरे उपासना मार्ग से (मा आ दभन्) च्युत न करें। (मा) और न (उपहस्वानः) तेरे उपासनामार्ग का उपहास करनेवाले (मूराः) मूर्ख लोग तुझे तेरे उपासना मार्ग से च्युत करें। तू (ब्रह्मद्विषः) ब्रह्मद्वेषी जन का (वनः) संसर्ग (मा कीम्) न किया कर।

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