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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 17
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    एन्द्र॑ सान॒सिं र॒यिं स॒जित्वा॑नं सदा॒सह॑म्। वर्षि॑ष्ठमू॒तये॑ भर ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒न्द्र॒ । सा॒न॒सिम् । र॒यिम् । स॒ऽजित्वा॑नम् ॥ स॒दा॒सऽह॑म् ॥ वर्षि॑ष्ठम् । ऊ॒तये॑ । भ॒र॒ ॥७०.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एन्द्र सानसिं रयिं सजित्वानं सदासहम्। वर्षिष्ठमूतये भर ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इन्द्र । सानसिम् । रयिम् । सऽजित्वानम् ॥ सदासऽहम् ॥ वर्षिष्ठम् । ऊतये । भर ॥७०.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 17

    भाषार्थ -
    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (ऊतये) हमारी रक्षा के लिए हमें (रयिम्) निजकृपा तथा निज प्रसन्नतारूपी सम्पत्ति (आ भर) प्रदान कीजिए, जो कि (सानसिम्) हमें ज्ञान-विज्ञान प्रदान करे, (सजित्वानम्) कामादि पर विजय प्राप्त कराये, (सदासहम्) सदा काम, अविद्या तथा राग-द्वेष आदि का पराभव करे, (वर्षिष्ठम्) और आनन्दरस की प्रभूत वर्षा करे। [सानसिम्=षणु दाने।]

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