अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 5
अतः॑ परिज्म॒न्ना ग॑हि दि॒वो वा॑ रोच॒नादधि॑। सम॑स्मिन्नृञ्जते॒ गिरः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअत॑: । प॒रि॒ऽज्म॒न् । आ । ग॒हि॒ । दि॒व: । वा॒ । रो॒च॒नात् । अधि॑ ॥ सम् । अ॒स्मि॒न् । ऋ॒ञ्ज॒ते॒ । गिर॑: ॥७०.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अतः परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि। समस्मिन्नृञ्जते गिरः ॥
स्वर रहित पद पाठअत: । परिऽज्मन् । आ । गहि । दिव: । वा । रोचनात् । अधि ॥ सम् । अस्मिन् । ऋञ्जते । गिर: ॥७०.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(परिज्मन्) हे सर्वगत परमेश्वर! अथवा हे समग्र भूमि के परिपालक परमेश्वर! आप (अतः) इस हृदय से (आ गहि) प्रकट हूजिए, हमें प्राप्त हूजिए (वा) या (दिवः रोचनात् अधि) प्रकाशमान मस्तिष्क के सहस्रार-चक्र से प्रकट हूजिए, हमें प्राप्त हूजिए। (अस्मिन्) इस उपासक में (गिरः) आपकी स्तुतियाँ, (सम्) सम्यक् रुप में (ऋञ्जते) परिपक्व हो रही हैं।
टिप्पणी -
[जभ गतौ (निरु০ ३.१.६)। अथवा ज्मा पृथिवी (निघं০ १.१)। ऋञ्जते=ऋजि (भर्जने)।]