अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 19
इन्द्र॒ त्वोता॑स॒ आ व॒यं वज्रं॑ घ॒ना द॑दीमहि। जये॑म॒ सं यु॒धि स्पृधः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । त्वाऽऊ॑तास: । आ । व॒यम् । वज्र॑म् । घ॒ना । द॒दी॒म॒हि॒ ॥ जये॑म । सम् । यु॒धि । स्पृध॑: ॥७०.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र त्वोतास आ वयं वज्रं घना ददीमहि। जयेम सं युधि स्पृधः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । त्वाऽऊतास: । आ । वयम् । वज्रम् । घना । ददीमहि ॥ जयेम । सम् । युधि । स्पृध: ॥७०.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्वोतासः) आप द्वारा सुरक्षित (वयम्) हम, (घना=घनानि) पाप-वृत्रों के हनन के साधनों का (आ ददीमहि) आदान करते हैं, और (वज्रम्) पाप-वृत्रों के लिए वज्ररूप आपका आश्रय लेते हैं। इस प्रकार (युधि) देवासुर-संग्राम में (स्पृधः) स्पर्धा आदि आसुरी भावनाओं को (सं जयेम) हम सम्यक् जीत लेते हैं।
टिप्पणी -
[घना=हनन-साधन यम-नियमादि। अर्वता=अर्व हिंसायाम्।]