Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 87

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 87/ मन्त्र 6
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८७

    तवे॒दं विश्व॑म॒भितः॑ पश॒व्यं यत्पश्य॑सि॒ चक्ष॑सा॒ सूर्य॑स्य। गवा॑मसि॒ गोप॑ति॒रेक॑ इन्द्र भक्षी॒महि॑ ते॒ प्रय॑तस्य॒ वस्वः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तव॑ । इ॒दम् । विश्व॑म् । अ॒भित॑ । प॒श॒व्य॑म् । यत् । पश्य॑सि । चक्ष॑सा । सूर्य॑स्य ॥ गवा॑म् । अ॒सि॒ । गोऽप॑ति: । एक॑: । इ॒न्द्र॒ । भ॒क्षी॒महि॑ । ते॒ । प्रऽय॑तस्य । वस्व॑: ॥८७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तवेदं विश्वमभितः पशव्यं यत्पश्यसि चक्षसा सूर्यस्य। गवामसि गोपतिरेक इन्द्र भक्षीमहि ते प्रयतस्य वस्वः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तव । इदम् । विश्वम् । अभित । पशव्यम् । यत् । पश्यसि । चक्षसा । सूर्यस्य ॥ गवाम् । असि । गोऽपति: । एक: । इन्द्र । भक्षीमहि । ते । प्रऽयतस्य । वस्व: ॥८७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 87; मन्त्र » 6

    भाषार्थ -
    हे परमेश्वर! (अभितः) सब ओर, (इदं विश्वम्) यह सब, जो (पशव्यम्) द्रष्टव्य जगत् है, वह (तव) आप का है, (यत्) जिस का कि आप ही (पश्यसि) निरीक्षण कर रहे हैं, और जिसे हम उपासक भी, आप की दी हुई (सूर्यस्य चक्षसा) सूर्यरूपी आँख द्वारा देखते हैं। (इन्द्र) हे परमेश्वर (एकः) आप अकेले ही (गवाम्) समग्र भुवनों के (गोपतिः) भुवनपति (असि) हैं। हे परमेश्वर! (प्रयतस्य) आप द्वारा दी गई पवित्र (वस्वः) सम्पत् का (भक्षीमहि) हम भोग कर रहे हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top