अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 31/ मन्त्र 10
उदायु॑षा॒ समायु॒षोदोष॑धीनां॒ रसे॑न। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । आयु॑षा । सम् । आयु॑षा । उत् । ओष॑धीनाम् । रसे॑न ।वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
उदायुषा समायुषोदोषधीनां रसेन। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । आयुषा । सम् । आयुषा । उत् । ओषधीनाम् । रसेन ।वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 31; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(आयुषा) आयु द्वारा (उत्) उत्थान करूँ, (आयुषा) आयु द्वारा (सम्) समुन्नत होऊँ, (औषधीनाम् रसेन) ओषधियों के रस द्वारा (उत्) उत्थान करूँ। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त होऊँ, (यक्ष्मेण) यक्ष्मा रोग से (वि) वियुक्त होऊँ, (आयुषा) स्वस्थ तथा दीर्घ आयु से (सम्) सम्बद्ध होऊँ।
टिप्पणी -
[ओषधियों के रसों के सेवन द्वारा आयु स्वस्थ होती और समुन्नत होती है। इससे पापों के करने से सेवक बचा रहता, तथा यक्ष्म आदि रोगों से छुटकारा पा लेता है।]