अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 31/ मन्त्र 8
आयु॑ष्मतामायु॒ष्कृतां॑ प्रा॒णेन॑ जीव॒ मा मृ॑थाः। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥
स्वर सहित पद पाठआयु॑ष्मताम् । आ॒यु॒:ऽकृता॑म् । प्रा॒णेन॑ । जी॒व॒ । मा । मृ॒था॒: । वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आयुष्मतामायुष्कृतां प्राणेन जीव मा मृथाः। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥
स्वर रहित पद पाठआयुष्मताम् । आयु:ऽकृताम् । प्राणेन । जीव । मा । मृथा: । वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 31; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(आयुष्मताम्) दीर्घ आयुवालों तथा (आयुष्कृताम्) दीर्घ और स्वस्थ आयु करनेवालों के (प्राणेन) प्राण द्वारा (जीव) तू जीवित रह, (मा मृथाः) और न मृत्यु को प्राप्त हो। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त होऊं, (यक्ष्मेण) यक्ष्मा रोग से (वि) वियुक्त होऊं, (आयुषा) स्वस्थ आयु से (सम्) सम्पन्न होऊं।
टिप्पणी -
[प्रापेण= प्राणवायु (सायण)। पृथिवी, चन्द्रमा, आदित्य, स्वयम् दीर्घ आयुवाले, और प्राणियों को आयु प्रदान करते हैं। पृथिवी जीवन के लिए अन्न रूपी प्राण प्रदान करती, चन्द्रमा ओषधियों में रस प्रदान कर जीवन के लिए रसरूपी प्राण प्रदान करता है, और आदित्य ताप-प्रकाशरूपी प्राण प्रदान करता है। पृथिवी "अन्नं वै प्राणिनां प्राणः"]