अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 31/ मन्त्र 5
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - त्वष्टा
छन्दः - विराट्प्रस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
त्वष्टा॑ दुहि॒त्रे व॑ह॒तुं यु॑न॒क्तीती॒दं विश्वं॒ भुव॑नं॒ वि या॑ति। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥
स्वर सहित पद पाठत्वष्टा॑ । दु॒हि॒त्रे । व॒ह॒तुम् । यु॒न॒क्ति॒ । इति॑ । इ॒दम् । विश्व॑म् । भुव॑नम् । वि । या॒ति॒ । वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वष्टा दुहित्रे वहतुं युनक्तीतीदं विश्वं भुवनं वि याति। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥
स्वर रहित पद पाठत्वष्टा । दुहित्रे । वहतुम् । युनक्ति । इति । इदम् । विश्वम् । भुवनम् । वि । याति । वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 31; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(त्वष्टा) सूर्य (दुहित्रे) निज दुहिता के लिए (वहतुम्)१ विवाह की (युनक्ति) योजना करता है, (इति) इस हेतु (विश्वम् भुवनम्) समग्र भूतजात (वियाति) विगत हो जाता है; (अहम्) मैं भी (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त हो जाऊँ, (यक्ष्मेण) यक्ष्मरोग से (वि) वियुक्त हो जाऊँ, (आयुषा) और स्वस्थ आयु से (सम्) संयुक्त हो जाऊँ।
टिप्पणी -
[त्वष्टा=सूर्य, यथा-"त्विषेर्वा स्याद् दीप्तिकर्मणः" (निरुक्त ८।२।१३)। सूर्य की दुहिता है सौररश्मि। इसकी एकरश्मि चन्द्रमा में जाकर चन्द्रमा के गृह को प्रकाशित करती है, यह है सौरदुहिता का चन्द्रमा के साथ विवाह। "अथाप्यस्यैको रश्मिश्चन्द्रमसं प्रति दीप्यते। आदित्यतोऽस्य दीप्तिर्भवति" (निरुक्त २।२।६)। तथा "सुषुम्णः सूर्यरश्मिश्चन्द्रमा गन्धर्वः" (यजु० १८।४०), अर्थात् सूर्य की रश्मि उत्तम सुखदायी है, और चन्द्रमा उस गो-नामक रश्मि को धारण करता है। तथा "अत्राह गोरमन्यत नाम त्वष्टुरपीच्यम्। इत्या चन्द्रमसो गृहे॥" (ऋ० १।८४।१५), पद ५४ (निरुक्त ४।४।२५), अर्थात् सूर्य की रश्मियों ने सूर्य से पृथक होकर चन्द्रमा के घर में जाना मान लिया, स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उपर्युक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि सूर्य की दुहिता का विवाह चन्द्रमा के साथ होता है। इस विवाहकाल में "वि याति" की भावना निम्नलिखित है— वेदानुसार बाल-विवाह निषिद्ध है और युवा-विवाह अनुमोदित है। शुक्लपक्ष में चन्द्रमा का युवापन पूर्णिमा के दिन होता है। इस दिन आदित्य भी अस्तंगत हुआ होता है और द्युलोक के नक्षत्र और तारागण भी चन्द्रमा के पूर्ण प्रकाश में दृष्टिगोचर नहीं होते और छिप जाते हैं। यह है "विश्वं भुवनं वियाति"] [१. बहतुम्=विवाह (अथर्व० १४।१।१४)]