अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 31/ मन्त्र 2
व्यार्त्या॒ पव॑मानो॒ वि श॒क्रः पा॑पकृ॒त्यया॑। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥
स्वर सहित पद पाठवि । आर्त्या॑ । पव॑मान: । वि । श॒क्र: । पा॒प॒ऽकृ॒त्यया॑ । वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
व्यार्त्या पवमानो वि शक्रः पापकृत्यया। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥
स्वर रहित पद पाठवि । आर्त्या । पवमान: । वि । शक्र: । पापऽकृत्यया । वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 31; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(पवमानः) पवित्र व्यक्ति (आर्त्या) पीड़ा से (वि) वियुक्त होता है, (शक्रः) धर्म में शक्तिशाली (पापकृत्यया) पापकर्म से (वि) वियुक्त होता है; इसी प्रकार (अहम) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त हो जाऊँ, (यक्ष्मेण) यक्ष्मा रोग से (वि) वियुक्त हो जाऊँ, (आयुषा) और स्वस्थ आयु से (सम्) संयुक्त हो जाऊं ।