अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 9
सूक्त - अथर्वा
देवता - अरातिसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अरातिनाशन सूक्त
या म॑ह॒ती म॒होन्मा॑ना॒ विश्वा॒ आशा॑ व्यान॒शे। तस्यै॑ हिरण्यके॒श्यै निरृ॑त्या अकरं॒ नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठया । म॒ह॒ती । म॒हाऽउ॑न्माना । विश्वा॑: । आशा॑: । वि॒ऽआ॒न॒शे । तस्यै॑ । हि॒र॒ण्य॒ऽके॒श्यै । नि:ऽऋ॑त्यै । अ॒क॒र॒म् । नम॑: ॥७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
या महती महोन्माना विश्वा आशा व्यानशे। तस्यै हिरण्यकेश्यै निरृत्या अकरं नमः ॥
स्वर रहित पद पाठया । महती । महाऽउन्माना । विश्वा: । आशा: । विऽआनशे । तस्यै । हिरण्यऽकेश्यै । नि:ऽऋत्यै । अकरम् । नम: ॥७.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
(या) जो (महती) महाविस्तारा, (महोन्माना) तथा महान् ऊंचाईवाली अदानभानना (विश्वाः आशाः) सब दिशाओं में (व्यानशे) फैल गई है, (तस्यै) उस (हिरण्यकेश्ये) सुवर्णाभूषण द्वारा विभूषित केशोंवाली (निर्ऋत्यै) कृच्छ्रापतिरूप अदानभावना के लिए (नम:) वज्रप्रहार (अकरम् ) मैंने किया है ।
टिप्पणी -
["महती" द्वारा चारों दिशाओं में, तथा "महोन्माना" द्वारा ऊर्ध्व दिशा में अदानभावना की व्याप्ति दर्शाई है। अदानभावना से व्यक्ति स्वयं धनी हो जाता है, और उसकी पत्नी सिर के सुवर्णामूषणों द्वारा भी विभूषित हो जाती है, परन्तु अदानभावना समाज के लिए कष्टापत्तिरूप हो जाती है। निर्ऋतिः कृच्छ्रापत्ति: (निरुक्त २।२।८)]