अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 123/ मन्त्र 4
सूक्त - भृगु
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - एकावसाना द्विपदा प्राजापत्या भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - सौमनस्य सूक्त
स प॑चामि॒ स द॑दामि। स य॑जे॒ स द॒त्तान्मा यू॑षम् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । प॒चा॒मि॒ । स: । द॒दा॒मि॒ । स: । य॒जे॒ । स: । द॒त्तात् । मा । यू॒ष॒म् ॥१२३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
स पचामि स ददामि। स यजे स दत्तान्मा यूषम् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । पचामि । स: । ददामि । स: । यजे । स: । दत्तात् । मा । यूषम् ॥१२३.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 123; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(सः) वह (पचामि) में पकाता हूं. (सः) वह (ददामि) में दान करता हूं, (सः) वह (यजे) में यज्ञ करता हूं, (सः) वह मैं (दत्तात्) दान से (मा) न (यूषम्) पृथक होऊं।
टिप्पणी -
[पकाना, और पक्व अन्न का बलिवैश्वदेव में, तथा अतिथियज्ञ में प्रदान करने का कथन मन्त्र में हुआ है। यदि गृह में पत्नी नहीं, तो भी गृहस्थी स्वयं पका कर अन्न द्वारा यज्ञ सम्पादन करें। यूषम्= यु + च्लेः सिच् ह्रस्व, उकारस्य दीर्घ ऊकारः।]