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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 76

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 76/ मन्त्र 4
    सूक्त - कबन्ध देवता - सान्तपनाग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - आयुष्य सूक्त

    नैनं॑ घ्नन्ति पर्या॒यिणो॒ न स॒न्नाँ अव॑ गछति। अ॒ग्नेर्यः क्ष॒त्रियो॑ वि॒द्वान्नाम॑ गृ॒ह्णात्यायु॑षे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । ए॒न॒म् । घ्न॒न्ति॒ । प॒रि॒ऽआयिन॑: । न । स॒न्नान् । अव॑ । ग॒च्छ॒ति॒ । अ॒ग्ने: । य: । क्ष॒त्रिय॑: । वि॒द्वान् । नाम॑ । गृ॒ह्णाति॑ । आयु॑षे ॥७६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नैनं घ्नन्ति पर्यायिणो न सन्नाँ अव गछति। अग्नेर्यः क्षत्रियो विद्वान्नाम गृह्णात्यायुषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । एनम् । घ्नन्ति । परिऽआयिन: । न । सन्नान् । अव । गच्छति । अग्ने: । य: । क्षत्रिय: । विद्वान् । नाम । गृह्णाति । आयुषे ॥७६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 76; मन्त्र » 4

    भाषार्थ -
    (पर्यायिणः) सब ओर घेरा लगाकर आये हुए शत्रु (एनम्) इस क्षत्रिय को (न घ्नन्ति) नहीं मार पाते, (न) और न (सन्नान्) घेरा डाले बैठे शत्रुओं को वह (अवगच्छति) अवगत ही करता है, इन्हें कुछ जानता ही है, न इन की परवाह ही करता है, (यः) जो (क्षत्रियः) क्षत्रिय (विद्वान्) युद्धविद्या या क्षात्रविद्या का विज्ञ हुआ (आयुषे) निज, प्रजाजन और राष्ट्र के दीर्घ जीवन के लिये (अग्नेः) क्षात्राग्नि का (नाम गृह्णाति) नाम ग्रहण करता है, नाम जपता है, इसे प्राप्तव्य देव जानकर इस की उपासना में रत रहता है।

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