अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 53/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - आयुः, बृहस्पतिः, अश्विनौ
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
अ॑मुत्र॒भूया॒दधि॒ यद्य॒मस्य॒ बृह॑स्पतेर॒भिश॑स्ते॒रमु॑ञ्चः। प्रत्यौ॑हताम॒श्विना॑ मृ॒त्युम॒स्मद्दे॒वाना॑मग्ने भि॒षजा॒ शची॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒मु॒त्र॒ऽभूया॑त् । अधि॑ । यत् । य॒मस्य॑ । बृह॑स्पते: । अ॒भिऽश॑स्ते: । अमु॑ञ्च: । प्रति॑ । औ॒ह॒ता॒म् । अ॒श्विना॑ । मृ॒त्युम् । अ॒स्मत् ।दे॒वाना॑म् । अ॒ग्ने॒ । भि॒षजा॑ । शची॑भि: ॥५५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अमुत्रभूयादधि यद्यमस्य बृहस्पतेरभिशस्तेरमुञ्चः। प्रत्यौहतामश्विना मृत्युमस्मद्देवानामग्ने भिषजा शचीभिः ॥
स्वर रहित पद पाठअमुत्रऽभूयात् । अधि । यत् । यमस्य । बृहस्पते: । अभिऽशस्ते: । अमुञ्च: । प्रति । औहताम् । अश्विना । मृत्युम् । अस्मत् ।देवानाम् । अग्ने । भिषजा । शचीभि: ॥५५.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 53; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(बृहस्पते) हे बृहस्पति ! तूने (अमुत्र भूयात् अधि) 'अमुत्र' अर्थात् उस परलोक में “भूयात्” अर्थात् सम्भाव्य उत्पत्ति से तथा (यमस्य) मृत्यु सम्बन्धी (अभिशस्तेः) विनाश से (यत्) जो (अमुञ्चः) तूने हमें मुक्त कर दिया है, तो (अग्ने) हे सर्वाग्रणी ! [आप की प्रेरणा द्वारा] ( देवानाम् भिषजौ) देवों में के चिकित्सक (अश्विनौ) दो अश्वी (अस्मत्) हम से (मृत्युम्) शीघ्र मृत्यु को भी (शवीभिः) वचनों द्वारा (प्रत्यौहताम्) निवारित करें ।
टिप्पणी -
[बृहस्पति है परमेश्वर, बृहतः ब्रह्माण्डस्य पतिः, अथवा बृहत्याः वेदवाचः पतिः। बृहस्पति ही अग्नि है, सर्वाग्रणी है। "अमुञ्चः" द्वारा प्रतीत होता है कि आयु के प्रार्थी जीवन्मुक्तावस्था में हैं, वे शतवर्षों तक की आयु के लिये प्रार्थी हैं, या और भी दीर्घायु के लिये प्रार्थी हैं। अश्विनौ= अश्विनौ को नासत्यौ भी कहते हैं (ऋ० ७।३६।४)। नासत्यौ= = "नासिकाप्रभवौ बभूवतुरिति वा" (निरुक्त ६।३।१३)। नासिका से पैदा होते हैं प्राण-और-अपान। ये दो दिव्य पदार्थों - सूर्य, चन्द्र अग्नि, विद्युत् आदि पदार्थों में– चिकित्सकरूप हैं, भिषक् हैं। प्राण-अपान क्रिया द्वारा वायु फुफसों [फेफड़ों] में जाकर रक्त को शुद्ध करती है और शुद्ध रक्त शरीर में प्रवाहित होकर शरीर के रोगों का उपचार करता और शक्ति प्रदान करता है, इसलिये अश्विनौ मृत्यु से रक्षा करते हैं। इन्हीं प्राण-अपानों का वर्णन मुक्त के शेष मन्त्रों में हुआ है। प्राणापानौ देवानां भिषजौ]।