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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    तां दे॒वः स॑वि॒ताधो॒क्तामू॒र्जामे॒वाधो॑क्।

    स्वर सहित पद पाठ

    ताम् । दे॒व: । स॒वि॒ता । अ॒धोक् । ताम् । ऊ॒र्जाम् । ए॒व । अ॒धो॒क् ॥१४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तां देवः सविताधोक्तामूर्जामेवाधोक्।

    स्वर रहित पद पाठ

    ताम् । देव: । सविता । अधोक् । ताम् । ऊर्जाम् । एव । अधोक् ॥१४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 5; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    इन्द्रादिदेवताकराज्य (आधिदैविकार्थ)(ताम्) उस विराट-गौ को (देवः) द्युतिसम्पन्न (सविता) सूर्य ने (अधोक्) दोहा, (ताम्) उससे (ऊर्जाम्) बल और प्राणदायक अन्न को (एव) ही उस ने (अधोक्) दोहा। वैश्यप्रकृतिक राज्य (आधिभौतिकार्थ)(ताम्) उस विराटरूपी गौ को, (सविता) प्रेरक (देवः) तथा व्यवहारप्रवृत्ति वाले राजा ने (अधोक्) दोहा, (ताम्) उस से (ऊर्जाम् एव) अन्न को ही (अधोक्) दोहा।

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