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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - पुरउष्णिक् सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    बृह॒स्पति॑रू॒र्जयोद्गा॑यति॒ त्वष्टा॒ पुष्ट्या॒ प्रति॑ हरति॒ विश्वे॑ दे॒वा नि॒धन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॒स्पति॑: । ऊ॒र्जया॑ । उत् । गा॒य॒ति॒ । त्वष्टा॑ । पुष्ट्या॑ । प्रति॑ । ह॒र॒ति॒ । विश्वे॑ । दे॒वा: । नि॒ऽधन॑म् ॥१०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पतिरूर्जयोद्गायति त्वष्टा पुष्ट्या प्रति हरति विश्वे देवा निधनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पति: । ऊर्जया । उत् । गायति । त्वष्टा । पुष्ट्या । प्रति । हरति । विश्वे । देवा: । निऽधनम् ॥१०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 5; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (बृहस्पतिः ऊर्जया उद्गायति) बृहस्पति का काल बल पूर्वक ऊंचागान करता है, (त्वष्टा) त्वष्टा का काल (पुष्ट्या) पुष्टि पूर्वक (प्रतिहरति) प्रतिहार करता है, (विश्वेदेवाः) समग्रदेवों का काल (निधनम्) साम की संपूर्णता करता है ॥२॥

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