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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - त्रिपदा विराडनुष्टुप् सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    अति॑थी॒न्प्रति॑ पश्यति हिङ्कृणोत्य॒भि व॑दति॒ प्र स्तौत्यु॑द॒कं याच॒त्युद्गा॑यति।

    स्वर सहित पद पाठ

    अति॑थीन् । प्रति॑ । प॒श्य॒ति॒ । हिङ् । कृ॒णो॒ति॒ । अ॒भि । व॒द॒ति॒ । प्र । स्तौ॒ति॒ । उ॒द॒कम् । या॒च॒ति॒ । उत् । गा॒य॒ति॒ ॥१०.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अतिथीन्प्रति पश्यति हिङ्कृणोत्यभि वदति प्र स्तौत्युदकं याचत्युद्गायति।

    स्वर रहित पद पाठ

    अतिथीन् । प्रति । पश्यति । हिङ् । कृणोति । अभि । वदति । प्र । स्तौति । उदकम् । याचति । उत् । गायति ॥१०.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 5; मन्त्र » 8

    भाषार्थ -
    अतिथिपति जो (अतिथीन् प्रतिपश्यति) अतिथियों में से प्रत्येक को मानपूर्वक देखता है (हिङ्कृणोति) वह हिङ् शब्द का उच्चारण करता है, (अभिवदति) जो अभिवादन करता है वह (प्रस्तौति) प्रस्ताव करता है, सामगान आरम्भ करता है, (उदकम् याचति) भृत्य द्वारा जो उदक की मांग करता है वह (उद्गायति) उच्चैः गान (उद्गीथ) करता है।

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