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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 1
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अग्ने॑ जा॒तान् प्र णु॑दा नः स॒पत्ना॒न् प्रत्यजा॑तान् नुद जातवेदः। अधि॑ नो ब्रूहि सु॒मना॒ऽअहे॑डँ॒स्तव॑ स्याम॒ शर्म॑ꣳस्त्रि॒वरू॑थऽउ॒द्भौ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑। जा॒तान्। प्र। नु॒द॒। नः॒। स॒पत्ना॒निति स॒ऽपत्ना॑न्। प्रतिं॑। अजा॑तान्। नु॒द॒। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। अधि॑। नः॒। ब्रू॒हि॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। अहे॑डन्। तव॑। स्या॒म। शर्म॑न्। त्रि॒वरू॑थ इति॑ त्रि॒ऽवरू॑थे। उ॒द्भावित्यु॒त्ऽभौ ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने जातान्प्रणुदा नः सपत्नान्प्रत्यजातान्नुद जातवेदः । अधि नो ब्रूहि सुमनाऽअहेडँस्तव स्याम शर्मँस्त्रिवरूथऽउद्भौ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। जातान्। प्र। नुद। नः। सपत्नानिति सऽपत्नान्। प्रतिं। अजातान्। नुद। जातवेद इति जातऽवेदः। अधि। नः। ब्रूहि। सुमना इति सुऽमनाः। अहेडन्। तव। स्याम। शर्मन्। त्रिवरूथ इति त्रिऽवरूथे। उद्भावित्युत्ऽभौ॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 1
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    पदार्थ -
    हे (अग्ने) राजन् वा सेनापते! आप (नः) हमारे (जातान्) प्रसिद्ध (सपत्नान्) शत्रुओं को (प्र, नुद) दूर कीजिये। हे (जातवेदः) प्रसिद्ध बलवान्! आप (अजातान्) अप्रसिद्ध शत्रुओं को (नुद) पे्ररणा कीजिये और हमारा (अहेडन्) अनादर न करते हुए (सुमनाः) प्रसन्नचित आप (नः) (प्रति) हमारे प्रति (अधिब्रूहि) अधिक उपदेश कीजिये, जिससे हम लोग (तव) आप के (उद्भौ) उत्तम पदार्थों से युक्त (त्रिवरूथे) आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक इन तीनों सुखों के हेतु (शर्मन्) घर में (स्याम) सुखी होवें॥१॥

    भावार्थ - राजा आदि न्यायाधीश सभासदों को चाहिये कि गुप्त दूतों से प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध शत्रुओं को निश्चय करके वश में करें और किसी धर्मात्मा का तिरस्कार और अधर्मी का सत्कार भी कभी न करें, जिस से सब सज्जन लोग विश्वासपूर्वक राज्य में वसें॥१॥

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