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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 29
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    सखा॑यः॒ सं वः॑ स॒म्यञ्च॒मिष॒ꣳस्तोमं॑ चा॒ग्नये॑। वर्षि॑ष्ठाय क्षिती॒नामू॒र्जो नप्त्रे॒ सह॑स्वते॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सखा॑यः। सम्। वः। स॒म्यञ्च॑म्। इष॑म्। स्तोम॑म्। च॒। अ॒ग्नये॑। वर्षि॑ष्ठाय। क्षि॒ती॒नाम्। ऊ॒र्जः। नप्त्रे॑। सह॑स्वते ॥२९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सखायः सँवः सम्यञ्चमिषँ स्तोमं चाग्नये । वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जा नप्त्रे सहस्वते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सखायः। सम्। वः। सम्यञ्चम्। इषम्। स्तोमम्। च। अग्नये। वर्षिष्ठाय। क्षितीनाम्। ऊर्जः। नप्त्रे। सहस्वते॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 29
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    पदार्थ -
    हे (सखायः) मित्रो! (क्षितीनाम्) मननशील मनुष्य (वः) तुम्हारे (ऊर्जः) बल के (नप्त्रे) पौत्र के तुल्य वर्त्तमान (सहस्वते) बहुत बल वाले (वर्षिष्ठाय) अत्यन्त बड़े (अग्नये) अग्नि के लिये जिस (सम्यञ्चम्) सुन्दर सत्कार के हेतु (इषम्) अन्न को (च) और (स्तोमम्) स्तुतियों को (समाहुः) अच्छे प्रकार कहते हैं, वैसे तुम लोग भी उस का अनुष्ठान करो॥२९॥

    भावार्थ - यहां पूर्व मन्त्र से (आहुः) इस पद की अनुवृत्ति आती है। कारीगरों को चाहिये कि सब के मित्र होकर विद्वानों के कथनानुसार पदार्थविद्या का अनुष्ठान करें। जो बिजुली कारणरूप बल से उत्पन्न होती है, वह पुत्र के तुल्य है, और जो सूर्य्यादि के सकाश से उत्पन्न होती है सो पौत्र के समान है, ऐसा जानना चाहिये॥२९॥

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