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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 32
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सोमादयो देवताः छन्दः - भुरिग्जगती स्वरः - निषादः
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    सोमा॑य कुलु॒ङ्गऽआ॑र॒ण्योऽजो न॑कु॒लः शका॒ ते पौ॒ष्णाः क्रो॒ष्टा मा॒योरिन्द्र॑स्य गौरमृ॒गः पि॒द्वो न्यङ्कुः॑ कक्क॒टस्तेऽनु॑मत्यै प्रति॒श्रुत्का॑यै चक्रवा॒कः॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमा॑य। कु॒लु॒ङ्गः। आ॒र॒ण्यः। अ॒जः। न॒कु॒लः। शका॑। ते। पौ॒ष्णाः। क्रो॒ष्टा। मा॒योः। इन्द्र॑स्य। गौ॒र॒मृ॒ग इति॑ गौरऽमृ॒गः। पि॒द्वः। न्यङ्कुः॑। क॒क्क॒टः। ते। अनु॑मत्या॒ इत्यनु॑ऽमत्यै। प्र॒ति॒श्रुत्का॑या॒ इति॑ प्रति॒ऽश्रुत्का॑यै। च॒क्र॒वा॒कऽइति॑ चक्रऽवा॒कः ॥३२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमाय कुलुङ्गऽआरण्योजो नकुलः शका ते पौष्णाः क्रोष्टा मायोरिन्द्रस्य गौरमृगः पिद्वो न्यङ्कुः कक्कटस्ते नुमत्यै प्रतिश्रुत्कायै चक्रवाकः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमाय। कुलुङ्गः। आरण्यः। अजः। नकुलः। शका। ते। पौष्णाः। क्रोष्टा। मायोः। इन्द्रस्य। गौरमृग इति गौरऽमृगः। पिद्वः। न्यङ्कुः। कक्कटः। ते। अनुमत्या इत्यनुऽमत्यै। प्रतिश्रुत्काया इति प्रतिऽश्रुत्कायै। चक्रवाकऽइति चक्रऽवाकः॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 32
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! यदि तुमने (सोमाय) सोम के लिये जो (कुलुङ्गः) कुलुङ्ग नामक पशु वा (आरण्यः) वनेला (अजः) बकरा (नकुलः) न्योला और (शका) सामर्थ्य वाला विशेषु पशु है, (ते) वे (पौष्णाः) पुष्टि करने वाले के सम्बन्धी वा (मायोः) विशेष सियार के हेतु (क्रोष्टा) सामान्य सियार वा (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्त पुरुष के अर्थ (गौरमृगः) गोरा हरिण वा जो (पिद्वः) विशेष मृग (न्यङ्कुः) किसी और जाति का हरिण और (कक्कटः) कक्कट नाम का मृग है, (ते) वे (अनुमत्यै) अनुमति के लिये तथा (प्रतिश्रुत्कायै) सुने पीछे सुनाने वाली के लिये (चक्रवाकः) चकई-चकवा पक्षी अच्छे प्रकार युक्त किये जावें तो बहुत काम करने को समर्थ हो सकें॥३२॥

    भावार्थ - जो वनेले पशुओं से भी उपकार करना जानें, वे सिद्ध कार्यों वाले होते हैं॥३२॥

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