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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 8
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - इन्द्राग्न्यादयो देवताः छन्दः - स्वराट् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    एता॑ऽऐन्द्रा॒ग्ना द्वि॑रू॒पाऽअ॑ग्नीषो॒मीया॑ वाम॒नाऽअ॑न॒ड्वाह॑ऽ आग्नावैष्ण॒वा व॒शा मै॑त्रावरु॒ण्योऽन्यत॑ऽएन्यो मै॒त्र्यः॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एताः॑। ऐ॒न्द्रा॒ग्नाः। द्वि॒रू॒पा इति॑ द्विऽरू॒पाः। अ॒ग्नी॒षो॒मीयाः॑। वा॒म॒नाः। अ॒न॒ड्वाहः॑। आ॒ग्ना॒वै॒ष्ण॒वाः। व॒शा। मै॒त्रा॒व॒रु॒ण्यः᳕। अ॒न्यत॑एन्य॒ इत्य॒न्यतः॑ऽएन्यः। मै॒त्र्यः᳖ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एताऽऐन्द्राग्ना द्विरूपाऽअग्नीषोमीया वामनाऽअनड्वाहऽआग्नावैष्णवा वशा मैत्रावरुण्योन्यतऽएन्यो मैत्र्यः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एताः। ऐन्द्राग्नाः। द्विरूपा इति द्विऽरूपाः। अग्नीषोमीयाः। वामनाः। अनड्वाहः। आग्नावैष्णवाः। वशा। मैत्रावरुण्यः। अन्यतएन्य इत्यन्यतःऽएन्यः। मैत्र्यः॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 8
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! तुमको (एताः) ये पूर्वोक्त (द्विरूपाः) द्विरूप पशु अर्थात् जिनके दो-दो रूप हैं, वे (ऐन्द्राग्नाः) वायु और बिजुली के संगी, जो (वामनाः) टेढ़े अङ्गों वाले व नाटे और (अनड्वाहः) बैल हैं, वे (अग्नीषोमीयाः) सोम और अग्नि देवता वाले तथा (आग्नावैष्णवाः) अग्नि और वायु देवता वाले जो (वशाः) वन्ध्या गौ हैं, वे (मैत्रावरुण्यः) प्राण और उदान देवता वाली और जो (अन्यतएन्यः) कहीं से प्राप्त हों, वे (मैत्र्यः) मित्र के प्रिय व्यवहार में जानने चाहियें॥८॥

    भावार्थ - जो मनुष्य वायु और अग्नि आदि के गुणों वाले गौ आदि पशु हैं, उनकी पालना करते हैं, वे सब का उपकार करने वाले होते हैं॥८॥

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