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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - मरुतादयो देवताः छन्दः - विराडतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    पृश्नि॑स्तिर॒श्चीन॑पृश्निरू॒र्ध्वपृ॑श्नि॒स्ते मा॑रु॒ताः फ॒ल्गूर्लो॑हितो॒र्णी प॑ल॒क्षी ताः सा॑रस्व॒त्यः प्लीहा॒कर्णः॑ शुण्ठा॒कर्णो॑ऽध्यालोह॒कर्ण॒स्ते त्वा॒ष्ट्राः कृ॒ष्णग्री॑वः शिति॒कक्षो॑ऽञ्जिस॒क्थस्तऽएे॑न्द्रा॒ग्नाः कृ॒ष्णाञ्जि॒रल्पा॑ञ्जि॒र्महाञ्जि॒स्तऽउ॑ष॒स्याः॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृश्निः॑। ति॒र॒श्चीन॑पृश्नि॒रिति॑ तिर॒श्चीन॑ऽपृश्निः। ऊ॒र्ध्वपृ॑श्नि॒रित्यू॒र्ध्वऽपृ॑श्निः। ते। मा॒रु॒ताः। फ॒ल्गूः। लो॒हि॒तो॒र्णीति॑ लोहितऽऊ॒र्णी। प॒ल॒क्षी। ताः। सा॒र॒स्व॒त्यः᳖। प्ली॒हा॒कर्णः॑। प्ली॒ह॒कर्ण॒ इति॑ प्लीह॒ऽकर्णः॑। शु॒ण्ठा॒कर्णः॑। शु॒ण्ठ॒कर्णः॑ इति॑ शुण्ठ॒ऽकर्णः॑। अ॒ध्या॒लो॒ह॒कर्ण॒ इत्य॑ध्यालोह॒ऽकर्णः॑। ते। त्वा॒ष्ट्राः। कृ॒ष्णग्री॑व॒ इति॑ कृ॒ष्णऽग्री॑वः। शि॒ति॒कक्ष॒ऽइति॑ शिति॒ऽकक्षः॑। अ॒ञ्जि॒स॒क्थऽइत्य॑ञ्जिऽस॒क्थः। ते। ऐ॒न्द्रा॒ग्नाः। कृ॒ष्णाञ्जि॒रिति॑ कृ॒ष्णऽअ॑ञ्जिः। अल्पा॑ञ्जि॒रित्यल्प॑ऽअञ्जिः। म॒हाञ्जि॒रिति॑ म॒हाऽअ॑ञ्जिः। ते। उ॒ष॒स्याः᳖ ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृश्निस्तिरश्चीनपृश्निरूर्ध्वपृश्निस्ते मारुताः फल्गूर्लाहितोर्णी पलक्षी ताः सारस्वत्यः प्लीहाकर्णः शुण्ठाकर्णा द्धयालोहकर्णस्ते त्वाष्ट्राः कृष्णग्रीवः शितिकक्षोञ्जिसक्थस्तऽऐन्द्राग्नाः कृष्णाञ्जिरल्पाञ्जिर्महाञ्जिस्तऽउषस्याः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पृश्निः। तिरश्चीनपृश्निरिति तिरश्चीनऽपृश्निः। ऊर्ध्वपृश्निरित्यूर्ध्वऽपृश्निः। ते। मारुताः। फल्गूः। लोहितोर्णीति लोहितऽऊर्णी। पलक्षी। ताः। सारस्वत्यः। प्लीहाकर्णः। प्लीहकर्ण इति प्लीहऽकर्णः। शुण्ठाकर्णः। शुण्ठकर्णः इति शुण्ठऽकर्णः। अध्यालोहकर्ण इत्यध्यालोहऽकर्णः। ते। त्वाष्ट्राः। कृष्णग्रीव इति कृष्णऽग्रीवः। शितिकक्षऽइति शितिऽकक्षः। अञ्जिसक्थऽइत्यञ्जिऽसक्थः। ते। ऐन्द्राग्नाः। कृष्णाञ्जिरिति कृष्णऽअञ्जिः। अल्पाञ्जिरित्यल्पऽअञ्जिः। महाञ्जिरिति महाऽअञ्जिः। ते। उषस्याः॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 4
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो जो (पृश्निः) पूछने योग्य (तिरश्चीनपृश्निः) जिसका तिरछा स्पर्श और (ऊर्ध्वपृश्निः) जिसका ऊँचा वा उत्तम स्पर्श है, (ते) वे (मारुताः) वायु देवता वाले। जो (फल्गूः) फलों को प्राप्त हों (लोहितोर्णी) जिसकी लाल ऊर्णा अर्थात् देह के बाल और (पलक्षी) जिसकी चंचल-चपल आंखें ऐसे पशु हैं, (ताः) वे (सारस्वत्यः) सरस्वती देवता वाले (प्लीहाकर्णः) जिसके कान में प्लीहा रोग के आकार के चिह्न हों (शुण्ठाकर्णः) जिसके सूखे कान और जिसके (अध्यालोहकर्णः) अच्छे प्रकार प्राप्त हुए सुवर्ण के समान कान ऐसे जो पशु हैं, (ते) वे सब (त्वाष्ट्राः) त्वष्टा देवता वाले, जो (कृष्णग्रीवः) काले गले वाले (शितिकक्षः) जिसके पांजर की ओर सुपेद अङ्ग और (अञ्जिसक्थः) जिसकी प्रसिद्ध जङ्घा अर्थात् स्थूल होने से अलग विदित हों, ऐसे जो पशु हैं, (ते) वे सब (ऐन्द्राग्नाः) पवन और बिजुली देवता वाले तथा (कृष्णाञ्जिः) जिसकी करोदी हुई चाल (अल्पाञ्जिः) जिसकी थोड़ी चाल और (महाञ्जिः) जिसकी बड़ी चाल ऐसे जो पशु हैं, (ते) वे सब (उषस्याः) उषा देवता वाले होते हैं, यह जानना चाहिये॥४॥

    भावार्थ - जो पशु और पक्षी पवन गुण वा जो नदी गुण वा जो सूर्य गुण वा जो पवन और बिजुली गुण तथा जो प्रातःसमय की वेला के गुण वाले हैं, उनसे उन्हीं के अनुकूल काम सिद्ध करने चाहियें॥४॥

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