यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 4
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - मरुतादयो देवताः
छन्दः - विराडतिधृतिः
स्वरः - षड्जः
92
पृश्नि॑स्तिर॒श्चीन॑पृश्निरू॒र्ध्वपृ॑श्नि॒स्ते मा॑रु॒ताः फ॒ल्गूर्लो॑हितो॒र्णी प॑ल॒क्षी ताः सा॑रस्व॒त्यः प्लीहा॒कर्णः॑ शुण्ठा॒कर्णो॑ऽध्यालोह॒कर्ण॒स्ते त्वा॒ष्ट्राः कृ॒ष्णग्री॑वः शिति॒कक्षो॑ऽञ्जिस॒क्थस्तऽएे॑न्द्रा॒ग्नाः कृ॒ष्णाञ्जि॒रल्पा॑ञ्जि॒र्महाञ्जि॒स्तऽउ॑ष॒स्याः॥४॥
स्वर सहित पद पाठपृश्निः॑। ति॒र॒श्चीन॑पृश्नि॒रिति॑ तिर॒श्चीन॑ऽपृश्निः। ऊ॒र्ध्वपृ॑श्नि॒रित्यू॒र्ध्वऽपृ॑श्निः। ते। मा॒रु॒ताः। फ॒ल्गूः। लो॒हि॒तो॒र्णीति॑ लोहितऽऊ॒र्णी। प॒ल॒क्षी। ताः। सा॒र॒स्व॒त्यः᳖। प्ली॒हा॒कर्णः॑। प्ली॒ह॒कर्ण॒ इति॑ प्लीह॒ऽकर्णः॑। शु॒ण्ठा॒कर्णः॑। शु॒ण्ठ॒कर्णः॑ इति॑ शुण्ठ॒ऽकर्णः॑। अ॒ध्या॒लो॒ह॒कर्ण॒ इत्य॑ध्यालोह॒ऽकर्णः॑। ते। त्वा॒ष्ट्राः। कृ॒ष्णग्री॑व॒ इति॑ कृ॒ष्णऽग्री॑वः। शि॒ति॒कक्ष॒ऽइति॑ शिति॒ऽकक्षः॑। अ॒ञ्जि॒स॒क्थऽइत्य॑ञ्जिऽस॒क्थः। ते। ऐ॒न्द्रा॒ग्नाः। कृ॒ष्णाञ्जि॒रिति॑ कृ॒ष्णऽअ॑ञ्जिः। अल्पा॑ञ्जि॒रित्यल्प॑ऽअञ्जिः। म॒हाञ्जि॒रिति॑ म॒हाऽअ॑ञ्जिः। ते। उ॒ष॒स्याः᳖ ॥४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पृश्निस्तिरश्चीनपृश्निरूर्ध्वपृश्निस्ते मारुताः फल्गूर्लाहितोर्णी पलक्षी ताः सारस्वत्यः प्लीहाकर्णः शुण्ठाकर्णा द्धयालोहकर्णस्ते त्वाष्ट्राः कृष्णग्रीवः शितिकक्षोञ्जिसक्थस्तऽऐन्द्राग्नाः कृष्णाञ्जिरल्पाञ्जिर्महाञ्जिस्तऽउषस्याः ॥
स्वर रहित पद पाठ
पृश्निः। तिरश्चीनपृश्निरिति तिरश्चीनऽपृश्निः। ऊर्ध्वपृश्निरित्यूर्ध्वऽपृश्निः। ते। मारुताः। फल्गूः। लोहितोर्णीति लोहितऽऊर्णी। पलक्षी। ताः। सारस्वत्यः। प्लीहाकर्णः। प्लीहकर्ण इति प्लीहऽकर्णः। शुण्ठाकर्णः। शुण्ठकर्णः इति शुण्ठऽकर्णः। अध्यालोहकर्ण इत्यध्यालोहऽकर्णः। ते। त्वाष्ट्राः। कृष्णग्रीव इति कृष्णऽग्रीवः। शितिकक्षऽइति शितिऽकक्षः। अञ्जिसक्थऽइत्यञ्जिऽसक्थः। ते। ऐन्द्राग्नाः। कृष्णाञ्जिरिति कृष्णऽअञ्जिः। अल्पाञ्जिरित्यल्पऽअञ्जिः। महाञ्जिरिति महाऽअञ्जिः। ते। उषस्याः॥४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्या ये पृश्निस्तिरश्चीनपृश्निरूर्ध्वपृश्निश्च सन्ति ते मारुताः। याः फल्गूर्लोहितोर्णी पलक्षी च सन्ति ताः सारस्वत्यः। ये प्लीहाकर्णः शुण्ठाकर्णोऽध्यालोहकर्णश्च सन्ति ते त्वाष्ट्राः। ये कृष्णग्रीवः शितिकक्षोऽञ्जिसक्थश्च सन्ति त ऐन्द्राग्नाः। ये कृष्णाञ्जिरल्पाञ्जिर्महाञ्जिश्च सन्ति त उषस्याश्च भवन्तीति वेद्यम्॥४॥
पदार्थः
(पृश्निः) प्रष्टव्यः (तिरश्चीनपृश्निः) तिरश्चीनः पृश्निः स्पर्शो यस्य सः (ऊर्ध्वपृश्निः) ऊर्ध्व उत्कृष्टः पृश्निः स्पर्शो यस्य सः (ते) (मारुताः) मरुद्देवताकाः (फल्गूः) या फलानि गच्छति प्राप्नोति सा (लोहितोर्णी) लोहिता ऊर्णा यस्याः सा (पलक्षी) पले चञ्चले अक्षिणी यस्याः सा (ताः) (सारस्वत्यः) सरस्वतीदेवताकाः (प्लीहाकर्णः) प्लीहेव कर्णे यस्य सः (शुण्ठाकर्णः) शुण्ठौ शुष्कौ कर्णौ यस्य सः (अध्यालोहकर्णः) अधिगतं च तल्लोहं च सुवर्णं तद्वद्कर्णौ यस्य सः। लोहमिति हिरण्यनामसु पठितम्॥ (निघं॰१।२) (ते) (त्वाष्ट्राः) त्वष्टृदेवताकाः (कृष्णग्रीवः) कृष्णा ग्रीवा यस्य सः (शितिकक्षः) शिती श्वेतौ कक्षौ पार्श्वौ यस्य सः (अञ्जिसक्थः) अञ्जीनि प्रसिद्धानि सक्थीनि यस्य सः (ते) (ऐन्द्राग्नाः) वायुविद्युद्देवताकाः (कृष्णाञ्जिः) कृष्णा विलिखिता अञ्जिर्मतिर्यस्य सः (अल्पाञ्जिः) अल्पगतिः (महाञ्जिः) महागतिः (ते) (उषस्याः) उषोदेवताकाः॥४॥
भावार्थः
ये पशवः पक्षिणश्च वायुगुणा ये नदीगुणा ये सूर्य्यगुणा ये वायुविद्युद्गुणा ये चोषोगुणाः सन्ति, तैस्तदनुकूलानि कार्य्याणि साधनीयानि॥४॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो जो (पृश्निः) पूछने योग्य (तिरश्चीनपृश्निः) जिसका तिरछा स्पर्श और (ऊर्ध्वपृश्निः) जिसका ऊँचा वा उत्तम स्पर्श है, (ते) वे (मारुताः) वायु देवता वाले। जो (फल्गूः) फलों को प्राप्त हों (लोहितोर्णी) जिसकी लाल ऊर्णा अर्थात् देह के बाल और (पलक्षी) जिसकी चंचल-चपल आंखें ऐसे पशु हैं, (ताः) वे (सारस्वत्यः) सरस्वती देवता वाले (प्लीहाकर्णः) जिसके कान में प्लीहा रोग के आकार के चिह्न हों (शुण्ठाकर्णः) जिसके सूखे कान और जिसके (अध्यालोहकर्णः) अच्छे प्रकार प्राप्त हुए सुवर्ण के समान कान ऐसे जो पशु हैं, (ते) वे सब (त्वाष्ट्राः) त्वष्टा देवता वाले, जो (कृष्णग्रीवः) काले गले वाले (शितिकक्षः) जिसके पांजर की ओर सुपेद अङ्ग और (अञ्जिसक्थः) जिसकी प्रसिद्ध जङ्घा अर्थात् स्थूल होने से अलग विदित हों, ऐसे जो पशु हैं, (ते) वे सब (ऐन्द्राग्नाः) पवन और बिजुली देवता वाले तथा (कृष्णाञ्जिः) जिसकी करोदी हुई चाल (अल्पाञ्जिः) जिसकी थोड़ी चाल और (महाञ्जिः) जिसकी बड़ी चाल ऐसे जो पशु हैं, (ते) वे सब (उषस्याः) उषा देवता वाले होते हैं, यह जानना चाहिये॥४॥
भावार्थ
जो पशु और पक्षी पवन गुण वा जो नदी गुण वा जो सूर्य गुण वा जो पवन और बिजुली गुण तथा जो प्रातःसमय की वेला के गुण वाले हैं, उनसे उन्हीं के अनुकूल काम सिद्ध करने चाहियें॥४॥
विषय
अन्यान्य प्रत्यंगों तथा अधीन रहने वाले नाना विभागों के भृत्यों और उनकी विशेष पोशाकों और चिह्नों का विवरण ।
भावार्थ
(५) (पृश्निः) चित्रविचित्र वर्ण, (तिरश्चीन पृभिः) तिरछे या आड़े शरीर पर चिटकले वाला, ( उर्ध्वपूभिः) ऊपर की ओर चित्र बिन्दु वाले, (मारुताः) 'मस्त' विभाग के हैं । (६) 'फल्गुः, लोहितोर्णी, पलक्षीताः सारस्वत्यः' (फल्गूः) स्वल्पबल वाली, (लोहितोर्णी) लाल ऊन पहनने वाली और (पलक्षी) श्वेत ऊन वाली अथवा अतिचञ्चल आंखों वाली स्त्रियां तीव्र दृष्टि शीघ्र भांपने वाली (ताः) वे (सारस्वत्यः) सरस्वती, वाणी या आज्ञाएं पहुँचाने के कार्य में लगाई जायं । (७) 'प्लीहा कर्ण: शुण्ठाकर्णः अध्यालोहकर्ण: ते स्वाष्टाः' (प्लीहा कर्णः ) तीव्र गति से भीतर प्रवेश करने वाले साधन, (गुण्ठाकर्णः) शुष्क काष्ठ के बने अथवा उपकरण और (अध्या लोहकर्णः) समस्त लोह के बने साधनों वाला (ते) ये सब (स्वाष्ट्राः) स्वष्टा अर्थात् शिल्पी वर्ग के पुरुष हैं । (८) कृष्णग्रीवः शिति- -कक्षः अञ्जिसक्थः ते ऐन्द्राग्नाः) काली ग्रीवा वाला या ग्रीवा पर काले चिन्ह वाला, कक्ष अर्थात् बगल में श्वेत चिन्ह वाला और जांघ पर श्वेत चिह्न वाला ये सब भी इन्द्र, अग्नि, सेनापति और अग्रणी नेता पुरुष के वर्ग के हैं । (९) 'कृष्णाञ्जिः, अल्पाञ्जिः महाजिः ते उपस्याः' काले लंगोट के, छोटे लंगोट के और बड़े लंगोट के ये पुरुष, 'उषा' शत्रुदाहक या प्रकाशकारी विभाग के पुरुष हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मरुद्रादयो देवताः । विराडतिधृतिः षड्जः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जे पशू व पक्षी वायूच्या गुणाचे असतात किंवा जे नदीच्या गुणाचे असतात किंवा जे सूर्याच्या गुणाचे असतात व जे वायू व विद्युत यांच्या गुणाचे व जे प्रातःकालीन उषेच्या गुणाचे असतात त्यांच्याकडून त्यानुसारच काम करून घ्यावे.
विषय
पुनश्च, त्याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (पृश्निः) असे पशू (पृश्निः) विचार करून, नीट परीक्षा करून पाळावेत की जे (तिरश्चीनपृश्निः) तिरपा स्पर्श आहे अथवा ज्याचा (ऊर्ध्वपृश्निः) उंच वा उत्तम स्पर्श आहे (ज्याच्या अंगावर हात फिरवल्यावर घसरतो का ज्याचा स्पर्श चांगला वाटतो) (ते) ते पशू (मारुताः) वायुदेवतामय जाणावेत. (वायूचे गुण असणारे समजावेत) जे (फल्गूः) फळें म्हणजे संतान देणारे (गर्भवान वा जन्म देणारे) आणि ज्यांच्या अंगावरील केस वा लोकर लाल रंगाची आहे व (पलक्षी) ज्यांचे डोळ्यात चपळ आहेत, (ताः) ते पशू (सारस्वत्यः) सरस्वतीदेवतामय जाणावेत. (प्लीहावर्णः) ज्यांचे कान प्लीहा () सारख्या आकाराचे असतात वा जे (शुण्ठाकर्णः) वाळलेल्या म्हणजे बुटक्या कानाचे आणि जे (अध्यालोहकर्णः) चांगल्या स्वर्णाच्या रंगाच्या कानाचे असतात (ते) तो सर्व (त्वाष्ट्राः) त्वष्टा देवता मय जाणावेत. याशिवाय जे (कृष्णग्रीवः) काळ्या गळ्याचे (शितीकण्ठः) ज्याची उजवी-डावी बाजू पांढरी असून जे (अञ्जिसक्थः) ज्यांची जंघा स्थूल असून शरीरापासून वेगळी वाढल्यासारखी दिसत असेल (ते) सर्व पशू (ऐन्द्राग्नाः) वायू आणि विद्युत देवतामय जाणावेत. तसेच (कृष्णाञ्जिः) ज्याची दुडकी चाल आहे वा जे पशु (अल्पाञ्जिः) हलस्या-चालीने चालतात वा जे (महाञ्जिः) तीव्र गतीने जातात, (ते )ते पशू (उषस्याः) उषा देवतामय जाणावेत ॥4॥
भावार्थ
भावार्थ - जे पशू वा पक्षी पवनाच्या गुणांचे जे नदी, सूर्य, पवन आणि विद्युत या गुणांचे असतात वा जे प्रातः काळच्या गुणांचे असतात, त्या पशुंकडून त्यांना अनुकूल आहेत, अशीच कामें करून घ्यावीत. ॥4॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Speckled, transversely speckled, upward speckled beasts belong to the Marutas. The beasts fond of fruits, red-haired, sharp-eyed belong to Saraswati. The beasts having ears like spleen, dry ears, golden ears belong to Twashta. The black-necked, the white-flanked, the bulky-thighed beasts belong to Indra and Agni. Beasts with faltering, feeble, fast gaits belong to the Dawn.
Meaning
Soft and dappled ones, those with transverse speckles, or upward speckles are of the quality and character of the Maruts; fruit-lovers, those with red hair, and those of quick quivering eyes belong to Sarasvati. The spleen-eared, white-eared, and the golden eared belong to Tvashta. Those of black neck, white flanks and heavy thighs are of the quality and character of Indra and Agni, wind and electric energy. And those of average or dark brilliance, little brilliance or great brilliance belong to the dawns.
Translation
The speckled ones, those speckled transversely, those speckled upwards belong to Maruts (the Cloud-bearing winds); those with undeveloped bodies, those with reddish hair, the white ones,those belong to Sarasvati, the male one with diseased ears, the one with short ears, the one with gold-coloured ears, these belong to Tvastr; the black-necked, the one with white flanks, the one with spotted thighs, these belong to Indra and Agni; the one with black spots, the one with small spots, the one with large spots, these belong to Usas (the dawn). (1)
Notes
Prsnih, विचित्रवर्ण:, speckled. Palaksi, पलक्ष शब्दो वलक्षार्थः, श्वेतः, white. Anjisakthaḥ, with prominent thighs, or with spotted thighs.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যাহা (পৃশ্নিঃ) প্রষ্টব্য (তিরশ্চীনপৃশ্নিঃ) যাহার তির্য্যক স্পর্শ এবং (ঊর্ধ্বপৃশ্নিঃ) যাহার উচ্চ বা উত্তম স্পর্শ (তে) তাহারা (মারুতাঃ) বায়ু দেবতা যুক্ত যাহা (ফল্ূঃ) ফলগুলিকে প্রাপ্ত হয় (লোহিতীর্ণী) যাহার লাল ঊর্ণা অর্থাৎ শরীরের লোম এবং (পলক্ষী) যাহার চঞ্চল চপল চক্ষু এমন পশু (তাঃ) তাহারা (সারস্বত্যঃ) সরস্বতী দেবতা যুক্ত (প্লীহাকর্ণঃ) যাহার কর্ণে প্লীহা রোগের আকার চিহ্ন হয় (শুণ্ঠাকর্ণঃ) যাহার শুষ্ক কর্ণ এবং যাহার (অধ্যালোহকর্ণঃ) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত সুবর্ণের সমান কর্ণ এমন যে পশু, (তে) তাহারা সব (ত্বাষ্ট্রাঃ) ত্বষ্টা দেবতাযুক্ত যে (কৃষ্ণগ্রীবঃ) কৃষ্ণ গ্রীবা যাহার (শিতিকক্ষঃ) যাহার পঞ্জরের দিকে শ্বেত অঙ্গ এবং (অঞ্জিসক্থঃ) যাহার প্রসিদ্ধ জঙ্ঘা অর্থাৎ স্থূল হওয়ার জন্য পৃথক বিদিত হয়, এমন যে পশু (তে) তাহারা সব (ঐন্দ্রাগ্নাঃ) বায়ু ও বিদ্যুৎ দেবতাযুক্ত তথা (কৃষ্ণাঞ্জিঃ) যাহার তির্য্যক চলন (অল্পাঞ্জিঃ) যাহার অল্প চলন (মহাঞ্জিঃ) যাহার মহাগতি এমন যে পশু, (তে) তাহারা সব (উষস্যাঃ) উষা দেবতা সম্পন্ন হয়, ইহা জানা উচিত ॥ ৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে পশু ও পক্ষী পবন গুণ বা যে নদী গুণ বা যে সূর্য্যগুণ বা যে পবন ও বিদ্যুৎ গুণ তথা যাহা প্রাতঃকালীন বেলার গুণযুক্ত তদ্দ্বারা তাহাদের অনুকূল কার্য্য সিদ্ধ করা উচিত ॥ ৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
পৃশ্নি॑স্তির॒শ্চীন॑পৃশ্নিরূ॒র্ধ্বপৃ॑শ্নি॒স্তে মা॑রু॒তাঃ ফ॒ল্গূর্লো॑হিতো॒র্ণী প॑ল॒ক্ষী তাঃ সা॑রস্ব॒ত্যঃ᳖ প্লীহা॒কর্ণঃ॑ শুণ্ঠা॒কর্ণো॑ऽধ্যালোহ॒কর্ণ॒স্তে ত্বা॒ষ্ট্রাঃ কৃ॒ষ্ণগ্রী॑বঃ শিতি॒কক্ষো॑ऽঞ্জিস॒ক্থস্তऽ ঐ॑ন্দ্রা॒গ্নাঃ কৃ॒ষ্ণাঞ্জি॒রল্পা॑ঞ্জির্ম॒হাঞ্জি॒স্তऽ উ॑ষ॒স্যাঃ᳖ ॥ ৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
পৃশ্নিরিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । মারুতাদয়ো দেবতাঃ । বিরাডতিধৃতিশ্ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বর ॥
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