यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 6
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - अग्न्यादयो देवताः
छन्दः - विराट् त्रिष्टुप्
स्वरः - ऋषभः
81
कृ॒ष्णग्री॑वा आग्ने॒याः शि॑ति॒भ्रवो॒ वसू॑ना॒ रोहि॑ता रु॒द्राणा॑ श्वे॒ताऽअ॑वरो॒किण॑ऽ आदि॒त्यानां॒ नभो॑रूपाः पार्ज॒न्याः॥६॥
स्वर सहित पद पाठकृ॒ष्णग्री॑वा॒ इति॑ कृ॒ष्णऽग्री॑वाः। आ॒ग्ने॒याः। शि॒ति॒भ्रव॒ इति॑ शिति॒भ्रवः॑। वसू॑नाम्। रोहि॑ताः। रु॒द्राणा॑म्। श्वे॒ताः। अ॒व॒रो॒किण॒ इत्य॑वऽरो॒किणः॑। आ॒दि॒त्याना॑म्। नभो॑रू॒पा॒ इति॒ नभः॑ऽरूपाः। पार्ज॒न्याः ॥६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कृष्णग्रीवाऽआग्नेयाः शितिभ्रवो वसूनाँ रोहिता रुद्राणाँ श्वेता अवरोकिण आदित्यानान्नभोरूपाः पार्जन्याः ॥
स्वर रहित पद पाठ
कृष्णग्रीवा इति कृष्णऽग्रीवाः। आग्नेयाः। शितिभ्रव इति शितिभ्रवः। वसूनाम्। रोहिताः। रुद्राणाम्। श्वेताः। अवरोकिण इत्यवऽरोकिणः। आदित्यानाम्। नभोरूपा इति नभःऽरूपाः। पार्जन्याः॥६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्या ये कृष्णग्रीवास्त आग्नेयाः। ये शितिभ्रवस्ते वसूनां ये रोहितास्ते रुद्राणां ये श्वेता अवरोकिणस्त आदित्यानां ये नभोरूपास्ते च पार्जन्याः बोध्याः॥६॥
पदार्थः
(कृष्णग्रीवाः) कृष्णा कर्षिका ग्रीवा निगरणं येषान्ते (आग्नेयाः) अग्निदेवताकाः (शितिभ्रवः) शितिश्श्वेताः भ्रूर्भ्रकुटिर्यासां ताः (वसूनाम्) पृथिव्यादीनाम् (रोहिताः) रक्तवर्णाः (रुद्राणाम्) प्राणादीनाम् (श्वेताः) श्वेतवर्णाः (अवरोकिणः) अवरोधकाः (आदित्यानाम्) सूर्यसम्बन्धिकां मासानाम् (नभोरूपाः) नभ उदकमिव रूपं येषां ते (पार्जन्याः) मेघदेवताकाः॥६॥
भावार्थः
मनुष्यैरग्नेराकर्षणक्रिया पृथिव्यादीनां धारणक्रिया वायूनां प्ररोहणक्रिया आदित्यानामवरोधिका मेघानां च जलवर्षिकाः क्रिया विदित्वा कार्येषूपयोज्याः॥६॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो जो (कृष्णग्रीवाः) ऐसे हैं कि जिनकी खिंची हुई गर्दन वा खिंचा हुआ खाना निगलना वे (आग्नेयाः) अग्नि देवता वाले (शितिभ्रवः) जिनकी सुपेद भौंहें हैं, वे (वसूनाम्) पृथिवी आदि वसुओं के, जो (रोहिताः) लाल रंग के हैं, वे (रुद्राणाम्) प्राण आदि ग्यारह रुद्रों के, जो (श्वेताः) सुपेद रंग के और (अवरोकिणः) अवरोध करने अर्थात् रोकने वाले हैं, वे (आदित्यानाम्) सूर्यसम्बन्धी महीनों के और जो (नभोरूपाः) ऐसे हैं कि जिनका जल के समान रूप है, वे जीव (पार्जन्याः) मेघदेवता वाले अर्थात् मेघ के सदृश गुणों वाले जानने चाहियें॥६॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि अग्नि की खींचने की, पृथिवी आदि को धारण करने की, पवनों को अच्छे प्रकार चढ़ने की, सूर्य आदि की रोकने की और मेघों की जल वर्षाने की क्रिया को जान कर सब कामों में सम्यक् निरन्तर उपयुक्त किया करें॥६॥
विषय
अन्यान्य प्रत्यंगों तथा अधीन रहने वाले नाना विभागों के भृत्यों और उनकी विशेष पोशाकों और चिह्नों का विवरण ।
भावार्थ
(कृष्णग्रीवाः आग्नेयाः) गर्दन पर काले चिह्न वाले पुरुष 'अग्नि' अर्थात् अग्रणी सम्बन्धी हों । (शितिभ्रवः वसूनाम् ) भ्रुवों पर श्वेत चिह्न के पुरुष 'वसु' नाम के प्रजा बसाने वाले अधिकारियों के हों । (रोहिताः रुद्राणाम् ) लाल वर्ण के पोशाक बाले 'रुद्र' नाम अधिकारियों के हों । (श्वेताः) श्वेत वस्त्र वाले दूसरों को बुरे काम करने और कुमार्ग से जाने में रोकने वाले पुरुष (आदित्यानाम् ) आदित्य नाम अधिकारियों के हैं । (नभोरूपाः पार्जन्याः) नील मेघ के वर्ण की पोशाक वाले पुरुष पर्जन्य, मेघ के समान जलदाता विभाग के हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्न्यादयो देवताः। विराड् पंक्तिः । पंचमः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी, अग्नीची वर आकर्षित करण्याची (खेचण्याची) क्रिया, पृथ्वीची धारण करण्याची क्रिया, वायूची अवरोध करण्याची व सूर्याची रोखण्याची क्रिया, तसेच मेघांची जलवर्षाव करण्याची (वर जाण्याची) क्रिया जाणून सर्व कामात त्यांचा सदैव सम्यक उपयोग करून घ्यावा.
विषय
पुनश्च, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, जे जीव (पशू वा कीटकादी प्राणी) (कृष्णग्रीवाः) ओढल्यासारख्या वा नांव अशा गळ्याचे अथवा जे रवंथ करणारे पशू असतात, त्यांना (आग्नेयाः) अग्नीदेवतामय (अग्नीसारख्या तेज आदी मुणांशर संबधित) असतात, हे जाणा वा तसे ओळखा. (शितिभ्रवः) ज्यांच्या भुया पांढर्या आहेत, ते प्राणी (वसूनाम्) पृथ्वी आदी वस्तूंच्या गुणांचे आहेत, असे जाणा. तसेच जे पशू (रोहिताः) लाल रंगाचे असतात, ते (रुद्राणाम्) प्राण आदी अकरा रूद्रांच्या गुणांचे आहेत असे जाणा. जे-पशू वा प्राणी (अवरोकिणः) अवरोध करणारे म्हणजे ऐकणारे (माजलेला वळू वा अत्ती आदी) असतात, ते (आदित्यानान्) सूर्यसंबंधी बारे महिन्यांच्या कुळाचे आहेत, असे जाणा आणि जे प्राणी (नभोरूपाः) जलाप्रमाणे रूप असलेले (नीलकर्ण प्राणी वा जलाप्रमाणे वाहणारे सरपटणारे प्राणी) (पार्जन्यः) मेघदेवतामय म्हणजे मेघाप्रमाणे पोषसत्व देणारे आहेत, असे जाणावे. ॥6॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांना हवे की अग्निपासून आकर्षणाची शक्ती, पृथ्वी आदीपासून धारण करण्याची शक्ती, पवनापासून उंच-उंच जाण्याची शक्ती, सूर्य आदीपासून शेकण्याची आणि ढगांपासून पाऊस पाडण्याची शक्ती, या सर्व शक्ती व गुण यांचे ज्ञान मिळवावे आणि सर्व कार्यात निरंतर त्यांचा उचित प्रमाणे उपयोग करावा ॥6॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Black necked animals possess the qualities of fire. White browed animals possess the qualities of Vasus. Red coloured animals possess the qualities of Rudras. Bright animals who prevent others from going astray possess the qualities of Adityas. Water coloured animals possess the qualities of clouds.
Meaning
Black-necked animals have the quality and character of fire. Those with white brows are of the Vasus such as earth. The red ones are of the quality and energy of pranas. The white ones and brilliant ones are of the nature of Adityas. And those of the colour of water and the sea are of the element of the clouds.
Translation
The black-necked ones belong to Agni; the whitebrowed belong to Vasus (the young sages), the red ones belong to Rudras (the adult sages); the white farsighted ones belong to Adityas (the mature sages); and the sky-blue ones belong to Parjanya (clouds). (1)
Notes
Avarokinaḥ, अवलोकिन:, far-sighted.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যাহারা (কৃষ্ণগ্রীবাঃ) এমন যে, যাহাদের কর্ষিত গ্রীবা অথবা কর্ষিত আহার নিগরণ তাহারা (আগ্নেয়াঃ) অগ্নি দেবতা বিশিষ্ট (শিতিভ্রবঃ) যাহার শ্বেত ভ্রূ, তাহারা (বসূনাম্) পৃথিবী আদি বসুদিগের, যাহারা (রোহিতাঃ) লাল রঙের তাহারা (রুদ্রাণাম্) প্রাণাদি একাদশ রুদ্রের, যাহারা (শ্বেতাঃ) শ্বেত বর্ণের এবং (অবরোকিণঃ) অবরোধ করা অর্থাৎ প্রতিহতকারী, তাহারা (আদিত্যানাম্) সূর্য্যসম্পর্কীয় মাসগুলির এবং যাহারা (নভোরূপাঃ) এমন যে, যাহার জলের সমান রূপ তাহারা জীব (পার্জন্যাঃ) মেঘ দেবতাযুক্ত অর্থাৎ মেঘ সদৃশ গুণযুক্ত জানা উচিত ॥ ৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, অগ্নি আকর্ষণ করিবার, পৃথিবী আদি ধারণ করিবার, পবনদের উত্তম প্রকার আরোহণ করিবার, সূর্য্যাদি প্রতিহত করিবার এবং মেঘের জল বর্ষণ করিবার ক্রিয়াকে সকল কার্য্যে সম্যক্ নিরন্তর নিযুক্ত করিতে থাকিবে ॥ ৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
কৃ॒ষ্ণগ্রী॑বা আগ্নে॒য়াঃ শি॑তি॒ভ্রবো॒ বসূ॑না॒ᳬं রোহি॑তা রু॒দ্রাণা॑ᳬं শ্বে॒তাऽঅ॑বরো॒কিণ॑ऽ আদি॒ত্যানাং॒ নভো॑রূপাঃ পার্জ॒ন্যাঃ ॥ ৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
কৃষ্ণগ্রীবা ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । অগ্ন্যাদয়ো দেবতাঃ । বিরাট্পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
ঋষভঃ স্বরঃ ॥
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