यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 28
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - ईशानादयो देवताः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
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ईशा॑नाय॒ त्वा॒ पर॑स्वत॒ऽआ ल॑भते मि॒त्राय॑ गौ॒रान् वरु॑णाय महि॒षान् बृह॒स्पत॑ये गव॒याँस्त्वष्ट्र॒ उष्ट्रा॑न्॥२८॥
स्वर सहित पद पाठईशा॑नाय। त्वा॒। पर॑स्वतः। आ। ल॒भ॒ते॒। मि॒त्राय॑। गौ॒रान्। वरु॑णाय। म॒हि॒षान्। बृह॒स्पत॑ये। ग॒व॒यान्। त्वष्ट्रे॑। उष्ट्रा॑न् ॥२८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ईशानाय परस्वतऽआलभते मित्राय गौरान्वरुणाय महिषान्बृहस्पतये गवयाँस्त्वष्ट्रऽउष्ट्रान् ॥
स्वर रहित पद पाठ
ईशानाय। त्वा। परस्वतः। आ। लभते। मित्राय। गौरान्। वरुणाय। महिषान्। बृहस्पतये। गवयान्। त्वष्ट्रे। उष्ट्रान्॥२८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे राजन्! यो मनुष्य ईशानाय त्वा परस्वतो मित्राय गौरान् वरुणाय महिषान् बृहस्पतये गवयान् त्वष्ट्र उष्ट्रानालभते, स धनधान्ययुक्तो जायते॥२८॥
पदार्थः
(ईशानाय) समर्थाय जनाय (त्वा) त्वाम् (परस्वतः) मृगविशेषान् (आ, लभते) (मित्राय) (गौरान्) (वरुणाय) (महिषान्) (बृहस्पतये) (गवयान्) (त्वष्ट्रे) (उष्ट्रान्)॥२८॥
भावार्थः
ये पशुभ्यो यथावदुपकारान् गृह्णीयुस्ते समर्थाः स्युः॥२८॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे राजा जो मनुष्य (ईशानाय) समर्थ जन के लिये (त्वा) आप और (परस्वतः) परस्वत् नामी मृगविशेषों को (मित्राय) मित्र के लिये (गौरान्) गोरे मृगों को (वरुणाय) अति श्रेष्ठ के लिये (महिषान्) भैसों को (बृहस्पतये) बृहस्पति अर्थात् महात्माओं के रक्षक के लिये (गवयान्) नीलगायों को और (त्वष्ट्रे) त्वष्टा अर्थात् पदार्थविद्या से पदार्थों को सूक्ष्म करने वाले के लिये (उष्ट्रान्) ऊंटों को (आ, लभते) अच्छे प्रकार प्राप्त होता है, वह धनधान्य युक्त होता है॥२८॥
भावार्थ
जो पशुओं से यथावत् उपकार लेवें, वे समर्थ होवें॥२८॥
विषय
भिन्न-भिन्न गुणों और विशेष हुनरों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना पक्षियों और जानवरों के चरित्रों का अध्ययन और संग्रह ।
भावार्थ
( ईशानाय) ऐश्वर्य या सामर्थ्यवान् जन के लिये ( परिस्वत :) परस्वान् नामक मृगों का निरीक्षण करे । ( मित्राय गौरान् ) मित्र, स्नेही व्यक्ति के लिये गौर मृगों को दृष्टान्त देखे । ये परस्पर बहुत ही स्नेह करते हैं । ( वरुणाय महिषान् ) वरुण, प्रतिद्वन्द्वी को वारण करने वाले के लिये महिष अर्थात् भैंसा को देखे । ( बृहस्पतये गजयान् ) बृहस्पति, बड़े राष्ट्र की रक्षा के लिये नील गायों को देखना चाहिये वे रेवड़ की बड़ी चीरता से रक्षा करते हैं, नर गवय मादीनों को बीच में घेर के रक्षा करते हैं । ( त्वष्ट्रे उष्ट्रान् ) त्वष्ट्रा, शिल्पियों के लिये उष्ट्र जाति के बोझा उठाने वाले जन्तुओं का निरीक्षण और उपयोग करे । जिस प्रकार लम्बी टांगों पर भारी शरीर किस कारीगरी से लगा है उसका अनुकरण करे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ईशानादयः । भुरिग् बृहतीः मध्यमः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जे पशूंचा योग्य उपयोग करून घेतात ते सामर्थ्यशाली बनतात.
विषय
पुढील मंत्रात तोच विषय सांगितलेला आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे राजा, जो माणूस (ईशानाय) समर्थ वा ऐश्यर्यवान बलवान मनुष्याच्या मदतीसाठी (त्वा) आपणांकडे (येतो त्याला आपण सहाय्य द्या) तसेच जो (परस्वतः) सरस्वत नामक विशेष प्रकारच्या हरणाचे पालन करतो आणि (मित्राय) मित्रासाठी (गौरान्) गौरवर्ण भृगांचे पालन करतो (तो त्याच्यापासून योग्य लाभ घेतो) या शिवाय जो (वरूणाय) अतिश्रेष्ठ मनुष्यासाठी (महिषान्) म्हशी वा रेड्यांचे पालन करतो, (बृहस्पतये) बृहस्पती अर्थात महात्माजनांचे रक्षक असलेल्या मनुष्यासाठी (गवयान्) नीळगायी पाळतो आणि (त्वष्ट्रे) त्वष्टा अर्थात जो पदार्थ विद्या (भौतिकशास्त्र) द्वारा पदार्थ सूक्ष्म करतो, त्या मनुष्यासाठी (उष्ट्रान्) उंट (आ, लभते) प्राप्त करतो, त्या पशुपालक, सर्वोपकारक मनुष्याप्रमाणे, हे राजा, वा हे मनुष्यानो, तुम्हीही तसे करा. कारण तुम्हीही त्याच्याप्रमाणे धनधान्यवान व्हाल ॥28॥
भावार्थ
भावार्थ - जे पशूंपासून यथायोग्य लाभ होतात, ते समर्थ म्हणजे ऐश्यर्ववान, बलवान होतात. ॥28॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Praswan deer should be secured for the wealthy ; Gaur deer for the friend ; buffaloes for the most prosperous ; forest cows for the guardian of the virtuous ; camels for the artisans.
Meaning
For the man of ruling power take up the parasvan antelopes of the forest, gauras for Mitra, the buffaloes for Varuna, wild cows for Brihaspati, and camels for Tvashta.
Translation
He procures wild asses (parasvat) for Isana (the ruling Lord), gauras for Mitra, buffaloes for Varuna, gayals for Brhaspati,and camels for Tvastr. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– হে রাজা! যে মনুষ্য (ঈশানায়) সক্ষম ব্যক্তির জন্য (ত্বা) স্বয়ং এবং (পরস্বতঃ) পরস্বৎ নামক মৃগবিশেষকে (মিত্রায়) মিত্রের জন্য (গৌরান্) গৌর মৃগদেরকে (বরুণায়) অতিশ্রেষ্ঠর জন্য (মহিষান্) মহিষদেরকে (বৃহস্পতয়ে) বৃহস্পতি অর্থাৎ মহাত্মাদের রক্ষকের জন্য (গবযান্) নীলগাইদেরকে এবং (ত্বষ্ট্রে) ত্বষ্ট্রা অর্থাৎ পদার্থবিদ্যা দ্বারা পদার্থগুলিকে সূক্ষ্মকারীদের জন্য (উষ্ট্রান্) উটসকলকে (আ, লভতে) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হয় সে ধনধান্যযুক্ত হয় ॥ ২৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ– যাহারা পশুদের হইতে যথাযথ উপকার লইবে তাহারা সামর্থ্যবান্ হইবে ॥ ২৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ঈশা॑নায়॒ ত্বা॒ পর॑স্বত॒ऽআ ল॑ভতে মি॒ত্রায়॑ গৌ॒রান্ বর॑ুণায় মহি॒ষান্ বৃহ॒স্পত॑য়ে গব॒য়াঁস্ত্বষ্ট্র॒ উষ্ট্রা॑ন্ ॥ ২৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ঈশানায়েত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । ঈশানাদয়ো দেবতাঃ । বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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