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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 35
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - स्वराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    ये वा॒जिनं॑ परि॒पश्य॑न्ति प॒क्वं यऽई॑मा॒हुः सु॑र॒भिर्निर्ह॒रेति॑।ये चार्व॑तो मासभि॒क्षामु॒पास॑तऽउ॒तो तेषा॑म॒भिगू॑र्त्तिर्नऽइन्वतु॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। वा॒जिन॑म्। प॒रि॒पश्य॒न्तीति॑ परि॒ऽपश्य॑न्ति। प॒क्वम्। ये। ई॒म्। आ॒हुः। सु॒र॒भिः। निः। ह॒र॒। इति॑। ये। च॒। अर्व॑तः। मा॒स॒ऽभि॒क्षामिति॑ मांꣳसऽभिक्षाम्। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते। उ॒तो इत्यु॒तो। तेषा॑म्। अ॒भिगू॑र्त्ति॒रित्य॒भिऽगू॑र्त्तिः। नः॒। इ॒न्व॒तु॒ ॥३५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये वाजिनम्परिपश्यन्ति पक्वँय ईमाहुः सुरभिर्निर्हरेति । ये चार्वतो माँसभिक्षामुपासतऽउतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ये। वाजिनम्। परिपश्यन्तीति परिऽपश्यन्ति। पक्वम्। ये। ईम्। आहुः। सुरभिः। निः। हर। इति। ये। च। अर्वतः। मासऽभिक्षामिति मांꣳसऽभिक्षाम्। उपासत इत्युपऽआसते। उतो इत्युतो। तेषाम्। अभिगूर्त्तिरित्यभिऽगूर्त्तिः। नः। इन्वतु॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 35
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    पदार्थ -
    (ये) जो (अर्वतः) घोड़े के (मांसभिक्षाम्) मांस के मांगने की (उपासते) उपासना करते (च) और (ये) जो घोड़ा को (ईम्) पाया हुआ मारने योग्य (आहुः) कहते हैं, उन को (निः, हर) निरन्तर हरो, दूर पहुंचाओ (ये) जो (वाजिनम्) वेगवान् घोड़ों को (पक्वम्) पक्का सिखा के (परिपश्यन्ति) सब ओर से देखते हैं (उतो) और (तेषाम्) उन का (सुरभिः) अच्छा सुगन्ध और (अभिगूर्त्तिः) सब ओर से उद्यम (नः) हम लोगों को (इन्वतु) प्राप्त हो, उन के अच्छे काम हमको प्राप्त हों, (इति) इस प्रकार दूर पहुंचाओ॥३५॥

    भावार्थ - जो घोड़े आदि उत्तम पशुओं का मांस खाना चाहें, वे राजा आदि श्रेष्ठ पुरुषों को रोकने चाहियें, जिस से मनुष्यों का उद्यम सिद्ध हो॥३५॥

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