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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 36
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    यन्नीक्ष॑णं माँ॒स्पच॑न्याऽउ॒खाया॒ या पात्रा॑णि यू॒ष्णऽआ॒सेच॑नानि।ऊ॒ष्म॒ण्याऽपि॒धाना॑ चरू॒णाम॒ङ्काः सू॒नाः परि॑ भूष॒न्त्यश्व॑म्॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। नीक्ष॑ण॒मिति॑ नि॒ऽईक्ष॑णम्। मा॒ꣳस्पच॑न्या॒ इति॑ मा॒ꣳस्पच॑न्याः। उ॒खायाः॑। या। पात्रा॑णि। यू॒ष्णः। आ॒सेच॑ना॒नीत्या॒ऽसेच॑नानि। ऊ॒ष्म॒ण्या᳖। अ॒पि॒धानेत्य॑पि॒ऽधाना॑। च॒रू॒णाम्। अङ्काः॑। सू॒नाः। परि॑। भू॒ष॒न्ति॒। अश्व॑म् ॥३६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्नीक्षणम्माँस्पचन्याऽउखाया या पात्राणि यूष्णऽआसेचनानि । ऊष्मण्यापिधाना चरूणामङ्काः सूनाः परि भूषन्त्यश्वम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। नीक्षणमिति निऽईक्षणम्। माꣳस्पचन्या इति माꣳस्पचन्याः। उखायाः। या। पात्राणि। यूष्णः। आसेचनानीत्याऽसेचनानि। ऊष्मण्या। अपिधानेत्यपिऽधाना। चरूणाम्। अङ्काः। सूनाः। परि। भूषन्ति। अश्वम्॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 36
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    पदार्थ -
    (या) जो (ऊष्मण्या) गरमियों में उत्तम (अपिधाना) ढांपने (आसेचनानि) और सिचाने हारे (पात्रााणि) पात्र वा (यत्) जो (मांस्पचन्याः) मांस जिस में पकाया जाए उस (उखायाः) बटलोई का (नीक्षणम्) निकृष्ट देखना वा (चरूणाम्) पात्रों के (अङ्काः) लक्षणा किये हुए (सूनाः) प्रसिद्ध पदार्थ तथा (यूष्णः) बढ़ाने वाले के (अश्वम्) घोड़े को (परि, भूषन्ति) सब ओर से सुशोभित करते हैं, वे सब स्वीकार करने योग्य हैं॥३६॥

    भावार्थ - यदि कोई घोड़े आदि उपकारी पशुओं और उत्तम पक्षियों का मांस खावें तो उन को यथापराध अवश्य दण्ड देना चाहिये॥३६॥

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