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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 38
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    नि॒क्रम॑णं नि॒षद॑नं वि॒वर्त्त॑नं॒ यच्च॒ पड्वी॑श॒मर्व॑तः।यच्च॑ प॒पौ यच्च॑ घा॒सिं ज॒घास॒ सर्वा॒ ता ते॒ऽअपि॑ दे॒वेष्व॑स्तु॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि॒क्रम॑ण॒मिति॑ नि॒ऽक्रम॑णम्। नि॒षद॑नम्। नि॒सद॑नमिति॑ नि॒ऽसद॑नम्। वि॒वर्त्त॑न॒मिति॑ वि॒ऽवर्त्त॑नम्। यत्। च॒। पड्वी॑शम्। अर्व॑तः। यत्। च॒। प॒पौ। यत्। च॒। घा॒सिम्। ज॒घास॑। सर्वा॑। ता। ते॒। अपि॑। दे॒वेषु॑। अ॒स्तु॒ ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    निक्रमणन्निषदनँविवर्तनँयच्च पड्वीशमर्वतः । यच्च पपौ यच्च घासिञ्जघास सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    निक्रमणमिति निऽक्रमणम्। निषदनम्। निसदनमिति निऽसदनम्। विवर्त्तनमिति विऽवर्त्तनम्। यत्। च। पड्वीशम्। अर्वतः। यत्। च। पपौ। यत्। च। घासिम्। जघास। सर्वा। ता। ते। अपि। देवेषु। अस्तु॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 38
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    पदार्थ -
    हे विद्वान्! जो (ते) तेरे (अर्वतः) घोड़े का (निक्रमणम्) निकलना (निषदनम्) बैठना (विवर्त्तनम्) विशेष कर वर्त्ताव वर्त्तना (च) और (यत्) जो (पड्वीशम्) पछाड़ी (यत्,च) और जो यह (पपौ) पीता (यत्,च) और जो (घासिम्) घास (जघास) खाता (ता) वे (सर्वा) सब काम युक्ति के साथ हों और यह सब (देवेषु) दिव्य उत्तम गुण वालों में (अपि) भी (अस्तु) होवे॥३८॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो! आप घोड़े आदि पशुओं को अच्छी शिक्षा तथा खान-पान के देने से अपने सब कामों को सिद्ध किया करो॥३८॥

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